हिन्द महासागर की तलीय आकृति Relief Features of the bottom of indian ocean

हिन्द महासागर परिचय एवं विस्तार (Introduction & Extent)

हिन्द महासागर अपने क्षेत्रफल और विस्तार में प्रशांत तथा अन्ध दोनों महासागरों से छोटा है। इसकी आकृत्ति दोनों से भिन्न है। इसका विस्तार गोलार्द्ध के दक्षिण हिस्सों में ही है। यह चारों ओर से महाद्वीपीय भागों से घिरा है।

उत्तर में एशिया, पश्चिम में अफ्रीका, पूर्व में एशिया, दक्षिण-पूर्व में आस्ट्रेलिया तथा दक्षिण में अन्टार्कटिका के पास इसका सम्बन्ध प्रशांत महासागर तथा अन्ध महासागर से हो जाता है। उत्तर की ओर से यह स्थलों से घिरा हुआ है। दक्षिण में 20° पूर्व से 115° पूर्वी देशान्तर के बीच अन्टार्कटिका महाद्वीप का तट आ गया है। चारों ओर से घिरा होने के कारण इसे “EMBAYED LANDLOCKED OCEAN” भी कहा जाता है। इसका कुल क्षेत्रफल 7.5 करोड़ किलोमीटर है।

          सतह (Surface) 

हिन्द महासागर अन्य दोनों महासागरों से कम गहरा है । कहीं भी इसकी गहराई 2.5 किलोमीटर से अधिक नहीं है । इसकी गहराई की भिन्नता भी बहुत कम है। इस महासागर के कुल क्षेत्रफल का 60% भाग गहन सागरीय मेदान है, जिसकी गहराई 2000 से 3000 फैदम के बीच है। हिन्द महासागर के तट का अधिकांश भाग गोंडवाना -लैंड के ब्लॉक से निर्मित होने के कारण ठोस तथा सघन हो गया है। पूर्वी द्वीपसमूह के तट के सहारे वलित पर्वतों की श्रृंखलाएँ भी पाई जाती हैं। सीमान्त सागर भी अन्य दो महासागरों की अपेक्षा कम पाये जाते हैं ।

        प्रादेशिक प्रभाग (Regional Division) : जॉनसन महोदय ने हिन्द महासागर को प्रादेशिक विषमताओं के आधार पर तीन खण्डों में विभक्त किया है।

  • पूर्वी भाग- यह भाग अत्यन्त गहरे तथा महाद्वीपीय मग्नतट संकरे ढाल वाले हैं ।
  • पश्चिमी भाग- यह अफ्रीका के पास स्थित है ।
  • मध्य भाग – इसकी उपस्थिति कटक के रूप में है, जिसके सहारे अनेक द्वीप पाये जाते हैं ।

 हिन्द महासागर का तल (Bottom of the Indian Ocean) : हिन्द महासागर के सतह पर अनेक जटिल स्थलाकृतियाँ है, परन्तु अन्य महासागरों की तुलना में इसकी स्थलाकृति विसंगतियाँ कम जटिल है। इस महासागर के मग्नतट का अधिकतर भाग भूमिज निक्षेप से ढका है, गहराई के अनुसार निक्षेप की मात्रा बढ़ती जाती है।

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महत्त्वपूर्ण उच्यावच स्थलाकृतियाँ (Important Relief Features)

महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf)

हिन्द महासागर के मग्नतटों में चौड़ाई की दृष्टि से पर्याप्त विविधता मिलती है । 150 फैदम की आइसोबाथ रेखा महासागरीय मग्नतट को सीमांकित करती है । मग्नतट पर अधिकतर भूमिज निक्षेप पागे जाते हैं। बंगाल की खाड़ी व अरब सागर के सहारे चौड़ा मग्नतट मिलता है । इसका कारण गंगा सिन्धु जैसी बृहत् नदियाँ द्वारा लाई गई मलवा है । यहाँ पर इसकी अधिकतम चौड़ाई 400 मीटर है। अफ्रीकी तट पर भी चौड़े मग्नतट मिलते हैं तथा जिसका आधुनिकतम विस्तार मेडागास्कर के पास है। पूर्व की ओर मग्न तट संकरे हो जाते हैं। उत्तर में जावा, सुमात्रा तट और दक्षिण में आस्ट्रेलिया तट पर इसकी चौड़ाई सौ मील ही रह जाती है । उत्पत्ति के आधार पर हिन्दू महासागर में पाँच तरह के मग्न तट पाए जाते हैं-

  1. लावा के भूगर्भिक उद्भेदन द्वारा विवर्तनिक बाँध के पीछे निक्षेपित मग्नतट -परसियन गल्फ मग्नतट व लालसागर का मध्यवर्ती भाग वाले मग्नतट का निर्माण इसी प्रक्रिया से हुआ है
  2. समुद्री जीव-जन्तुओं के अवशेष द्वारा निर्मित मग्नतट– तटीय लालसागर, पूर्वी मध्य अफ्रीकी तट, उत्तर मालागासी तट का निर्माण इसी प्रक्रिया से हुआ है
  3. लहरों द्वारा अपरदित मग्नंतट– वर्मा व सुमात्रा तट, मालागासी के पूर्वी, दक्षिण व दक्षिणपूर्वी तट अफ्रीका के दक्षिण पूर्वी तट का निर्माण इसी प्रक्रिया से हुआ है ।
  4. हिम द्वारा अपरदित मग्नतट- अंटार्कटिका तट पर इस प्रक्रिया से मग्नतटों का निर्माण हुआ है। इसके अलावा हिन्द महासागर के शेष मग्नतटों का निर्माण बाँध रहित साधारण प्रक्रिया से हुआ है ।

  महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope) 

हिन्द महासागर में अवस्थित प्रमुख महाद्वीपीय ढाल का नाम-

महाद्वीपीय ढालों के नाम           ढाल
पश्चिम आस्ट्रेलिया          10°
दक्षिण इण्डोनेशिया द्वीप          5°
इरावदी व गंगा नदी          1°-2°
पूर्वी भारतीय प्रायद्वीप          4°-6°
श्रीलंका          10°
पश्चिम भारत          2°-3°

मध्यवर्ती कटक (Mid-Oceanic Ridges)

हिन्द महासागर के बीचो-बीच एक अतः सागरीय कटक है जो कि हिन्द महासागर को दो भागों में बाँटता है । इसकी आकृति अंग्रेजी के अक्षर उल्टे (2.) की तरह है । यह एमस्टरडम पठार के पास दो भागों में विभाजित हो जाती है । यह कटक उत्तर से दक्षिण की ओर एक संकरी पट्टी में मिलता है, तथा इसकी चौड़ाई 300 किलोमीटर से लेकर 1600 किलोमीटर तक है। यह लक्षद्वीप से लेकर अंटार्कटिका तक फैला है। ये कटक श्रेणियाँ कई उपशाखाओं में बँटी है:-

  1. लक्ष द्वीप चागोस कटक– यह प्रायद्वीपीय भारत के मग्नतट के पास पाया जाता है व चौड़ाई तथा गहराई क्रमशः 200 मील तथा 200 मीटर है। इसके ऊपर कई छोटे द्वीप हैं
  2. चागोस-सेंटपाल या मध्य हिन्द कटक – विषुवत रेखा के 30° दक्षिण अक्षांश के बीच स्थित है।
  • एमस्टर्डम सेंट पाल कटक – 30° से 50° तथा 65° से 110° पूर्वी दक्षिण अक्षांश के बीच स्थित है।
  1. इण्डियन अन्टार्कटिका, कारगुलेन कासवर्ग कटक – 50° दक्षिण अक्षांश के दक्षिण एम्स्टर्डम सॅट पाल कटक द्विविभाजित होकर पूर्वी भाग इण्डियन अण्टार्कटिका कटक व पश्चिम शाखा कारगुलेन कासवर्ग कटक कहलाता है । मध्यवर्ती कटक से कई शाखा कटक निकलकर अफ्रीका व भारत के तटों तक फैले हैं।
  2. सुकोत्रा – चागोस कटक – 50° दक्षिण अक्षांश दिशा में पूर्वी अफ्रीका के गुर्दाकुई अंतरीप तक चला गया है । • पास सुकोत्रा चागोस कटक स्थित है, जो उत्तर पश्चिम
  3. सेसल्स मारीशस कटक-18° दक्षिण अक्षांश के निकट सेसल्स मारीशस कटक अवस्थित है ।
  • मर्रे कटक-22° दक्षिण अक्षांश के बीच मरें कटक स्थित है । _
  • मेडागास्कर कटक-अफ्रीका के दक्षिण में मेडागास्कर कटक स्थित है ।
  1. जिंस क्रोजेट कटक-40° से 50° दक्षिण अक्षांश के बीच यह कटक स्थित है । _
  2. अंडमान-निकोबार कटक-इरावदी नदी के मुहाने से लेकर अंडमान-निकोबार द्वीप तक फैला है ।
  3. कार्ल्सबर्ग कटक-अरब सागर को बाँटने वाली कार्ल्सबर्ग कटक है ।
  • एम्स्टरर्डम कटक-90° पूर्वी कटक, 90° पूर्वी देशान्तर के सहारे उत्तर में एम्स्टरर्डम कटक से दक्षिण में गंगा के मुहाने तक फैला है ।

पठार (Plateau)

मध्यवर्ती कटकों के बीच हिन्द महासागर में कई पठार भी मिलते हैं।

  1. उत्तर में चागौस कटक के पास चागौस लक्षद्वीप पठार,
  2. दक्षिण-पश्चिम में मेडागास्कर पठार, पाई
  • पश्चिम में मोजाम्बिक पठार,
  1. एम्सटरडम द्वीप के दक्षिण-पश्चिम में एम्सटरडम पठार,
  2. अगुलहास पठार
  3. दक्षिण-पश्चिम में आस्ट्रेलिया का नेचुरलिस्टे पठार,
  • उत्तर-पश्चिम में आस्ट्रेलिया के सहारे एक्समाउथ पठार ।

बेसिन (Basin)

मध्यवर्त्ती व अन्य कटक हिन्द महासागर को कई बेसिनों में बाँटती है व इसकी गहराई 4000-6000 मीटर के बीच है । पूर्वी भाग में तीन प्रमुख बेसिन है-

  • अंडमान बेसिन – गहराई 2000 मीटर है।
  • कोकोस फिलिंग द्रोणी – यह 10° उत्तर से 50° दक्षिण तक विस्तृत है । इसकी गहराई 2000 से 4000 मीटर है।
  • पूर्वी भारतीय अण्टार्कटिका बेसिन – यह दक्षिण में 50° दक्षिण अक्षांश व पश्चिम में करगुलेन कटक से घिरा है।

पश्चिम भाग की मुख्य द्रोणी / बेसिन

  1. ओमान बेसिन – 4000 मीटर गहरी है ।
  2. सोमाली बेसिन-उत्तर व पूर्व में सोकोत्रा, चागौस व सेन्ट पाल कटक से व दक्षिण में सेसल्स कटक से घिरा यह बेसिन है । इसकी गहराई 5000 से 6500 मीटर गहरी है।
  • मारीशस बेसिन-यह बेसिन मलागासी व सेन्टपाल कटक के बीच स्थित है । इसकी गहराई 4000 मीटर है।
  1. नेटाल बेसिन-दक्षिण मालागासी कटक व दक्षिणी अफ्रीली तट के बीच स्थित वाली बेसिन ही नेटाल बेसिन कहलाती है । इसकी गहराई 4000 मीटर है।
  2. अगुलहास बेसिन- क्रोजेट कटक का पूर्वी हिस्सा अगुलहास बेसिन कहलाती है । इसका विस्ता अटलांटिक बेसिन का भाग है । इसकी गहराई 6000 मीटर है।
  3. अटलांटिक- भारतीय- अन्टार्कटिका द्रोणी- यह प्रिंस एडवर्ड क्रोजेट कटक व अंटार्कटिका के बी स्थित है । इसकी गहराई 5000 मीटर है । वास्तव में यह अटलांटिक महासागर की अटलांटिक अण्टार्कटिक द्रोणी का ही विस्तृत भाग है ।

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गर्त (Deeps)

यहाँ गर्तों की संख्या कम पाई जाती है , क्योंकि इस महासागर के तली का क्षेत्रफल का 80% भाग सागरीय मैदान ही है। विश्व के 57 गर्तों में से मात्र 6 गर्त ही इस महासागर में पाया जाता है।  जावा द्वीप के सहारे मुख्य गर्त सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है ।

महत्त्वपूर्ण गर्तों के नाम-

  • सुण्डा गर्त्त – इसकी गहराई 7,400 मीटर है
  • चागोस गर्त्त – यह कारगुलेन कटक के पास है ।
  • वेमा गर्त – यह काल्सवर्ग कटक के पास स्थित है ।
  • अमिरान्ते गर्त – यह सेसल्स कटक के पास स्थित है ।
  • डायमंटिना गर्त– यह दक्षिण-पश्चिम में स्थित है ।
  • मारीशस गर्त्त– मारीशस कटक के दक्षिण में यह स्थित है ।

सुण्डा गर्त को ही जावा गर्त कहा जाता है। यह सुमात्रा तथा जावा द्वीपों के दक्षिण में पूर्व-पश्चिम दिशा में यह गर्ल फैला हुआ है ।

 रिफ्ट घाटी (Rift Valley) : महासागरीय गर्त के पास स्थित रिफ्ट घाटी मिलते हैं, जिनमें लाल सागर प्रमुख है। इसके अलावा सेण्ट पाल पास दक्षिण भाग व वेमा गर्त के पास ओवेन भ्रंशन क्षेत्र, रोडीगेज भ्रंशन क्षेत्र, मोजाम्बिक भ्रंशन क्षेत्र, फटक डायमंटिना भ्रंशन क्षेत्र ।

इनमें डायमंटिना भ्रंशन सबसे लम्बा है। यह दक्षिण पश्चिम आस्ट्रेलिया के पास है ।

गहन सागरीय मैदान (Deep Sea Plain)

हिन्द महासागर में दो नित्तलीय मैदान है-

  1. उत्तर- पूरब में सोमाली के पास सोमाली नित्तलीय मैदान ।
  2. श्रीलंका के दक्षिण में व चागोस गर्त के पूरब में श्रीलंका नित्तलीय मैदान ।

 कन्दराएँ : हिन्द महासागर में गंगा व सिन्धु नदियों के मुहाने के पास अनेक कन्दराएँ मिलती है । उत्तर-पूर्वी तट, पूर्वी अफ्रीका के तट व जंजीबार के दक्षिण में भी अनेक कन्दराएँ/कैनियन मिलते हैं । प्रमुख कन्दराएँ त्रिकोम्बली, कुम्बुकन, निलवाला, पानाडुर व मोकांबो है।  श्रीलंका के तटों पर भी कन्दराएँ मिलती हैं । इसकी प्रवणता 0.8% है ।

द्वीप समूह (Island Group)

हिन्द महासागर में अनेक छोटे-बड़े द्वीप एवं द्वीप समूह है। यहाँ स्थित द्वीप महाद्वीप खण्डों से टूटकर अलग हुए भाग हैं। वे इस महासागर को उत्तर-पश्चिम से घेरे हुए है। जैसे- अण्डमान निकोबार द्वीपसमुह, श्रीलंका, मेडागास्कर व जाम्बीकार।

प्रवाल निर्मित द्वीप – भारत के दक्षिण-पश्चिम तट के समीप लावा द्वीप व मालद्वीप प्रवाल द्वीप के अच्छे उदाहरण हैं ।

ज्वालामुखी द्वीप – मेडागास्कर के पूर्व में स्थित मारीशस व रोमूनियन द्वीप ।

हिन्द महासागर का पूर्वी क्षेत्र द्वीपों से लगभग खाली है। छोटे द्वीप जो यहाँ-वहाँ फैले हैं, उनमें प्रमुख है, क्रिसमस द्वीप व मालद्वीप का कोकोस समूह ।

सीमांत सागर

हिन्द महासागर के सीमान्त सागर की संख्या अधिक नहीं है। सीमान्त सागर महाद्वीपों के कटे-फटे भाग में मिलते हैं। प्रमुख सीमान्त सागर है-बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, अंडमान सागर, फारस की खाड़ी, लाल सागर इत्यादि ।

हिन्द महासागर के तटवर्त्ती सागरों में वस्तुतः लाल सागर व फारस की खाड़ी आते हैं । लाल सागर और अरब प्रायद्वीप के मध्य पायी जानेवाली भ्रंश घाटी में स्थित है, जिनमें स्वेज एवं अकाबा की खाड़ियाँ हैं । बाबुल मन्हब जल – डमरूमध्य इस समुद्र को हिन्द महासागर से अलग करता है। अण्डमान सागर अण्डमान निकोबार द्वीपचाप तथा क्रा स्थलडमरूमध्य से घिरी हुई बेसिन में स्थित है

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