परिचय (Introduction)
पृथ्वी का धरातल जल और थल से मिलकर बना है । समस्त भूपटल का क्षेत्रफल 50 करोड़ 99 लाख 50 हजार वर्ग किलोमीटर है, परन्तु इस क्षेत्रफल के 70.8 प्रतिशत अर्थात् 36 करोड़ 10 लाख 50 हजार वर्ग किलोमीटर पर जल क्षेत्र का विस्तार है । जलमण्डल का अधिकांश भाग निम्न चार महासागरों ने घेर रखा है ।
महासागर औसत गहराई (मीटर में) क्षेत्रफल (लाख वर्ग कि०मी०) |
प्रशान्त महासागर 5,000 1,655 |
अन्ध महासागर 3,930 821 |
हिन्द महासागर 4,000 736 |
आर्कटिक महासागर 1,280 140 |
महासागर की तली भूमि के धरातल की भाँति ऊँची-नीची मानी जाती है । भूमि की ऊँचाई की अपेक्षा महासागरों में गहराई अधिक पाई जाती है । पृथ्वी की धरातल की औसत ऊँचाई 840 मीटर है, जबकि महासागरों की औसत गहराई 3800 मीटर है।
अटलांटिक महासागर ( Atlantic Ocean)
आकार एवं विस्तार (Shape and Extent) : इस महासागर की सामान्य रूपरेखा अंग्रेजी वर्णमाला के S अक्षर के समान है, क्योंकि इसके पूर्व में जहाँ अफ्रीका का सहारा तट पश्चिम की ओर उभरा हुआ है, वहीं दक्षिणी अमेरिका का उत्तरी तट कैरीबियन सागर में मि का और उभरा हुआ है, वही दाना अना दबा हुआ है । इस महासागर का विस्तार उत्तरी ध्रुवसागर से दक्षिण में अण्टार्कटिका तक है । इस महासागर का विस्तार समस्त पृथ्वी के धरातल के 16% भाग पर है । इसका क्षेत्रफल प्रशान्त महासागर के क्षेत्रफल का लगभग 50% है । इसका क्षेत्रफल 821 लाख वर्ग किलोमीटर है । इस महासागर की चौड़ाई विषुवत रेखा पर कम होती है ।
विषुवत रेखा पर इसकी लम्बाई केवल 2,540 किलोमीटर है । उत्तर से दक्षिण की ओर लम्बाई अधिक है । 35° उत्तरी अक्षांश के निकट यह महासागर 5,920 किलोमीटर चौड़ा है। ध्रुवों की ओर इस महासागर की चौड़ाई कम होती जाती । इस महासागर की औसत गहराई 3,930 मीटर है। इस महासागर के विशिष्ट आकार एवं विस्तार को देखने से ऐसा लगता है कि इसके पूर्व तथा पश्चिम में स्थित महाद्वीप सुदूर अतीत में एक-दूसरे से सम्बद्ध थे।
अटलांटिक महासागर के नितल का उच्चावच (Relief Features of the bottom of Atlantic Ocean)
अटलांटिक महासागर के नित्तल का उच्यावय अत्यकिध विभिन्नतापूर्ण है। इसके नित्तल उच्चावय में निम्न स्वरूप देखने को मिलते हैं-
महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) : इस महासागर में मग्नतट का विस्तार अन्य महासागरों की तुलना में सबसे अधिक है। कुछ भागों को छोड़कर इस महासागर के चारों ओर चौड़े मग्नतट पाये जाते हैं। उत्तरी अटलांटिक में मग्नतट प्रायः सर्वत्र सपाट एवं चौड़े हैं। उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट पर मग्नतट की चौड़ाई 240 से 400 किलोमीटर तक पाई जाती है। न्यूफाउण्डलैण्ड के निकट ग्राण्ड बैंक तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर स्थित न्यूजर्सी राज्य के तटीय भाग में मग्नतट की चौड़ाई 144 किलोमीटर है। 10° से 50° दक्षिणी अक्षांश तक ब्राजील का मग्नतट बहुत सँकरा है।
दक्षिणी अटलांटिक महासागर में अर्जेण्टाइना और आइसलैण्ड के मरनतट अधिक विस्तृत हैं। ग्रीनलैंड एवं आइसलैंड के मग्नतट भी अधिक चौड़े हैं। उत्तरी अमेरिका और यूरोप महाद्वीप के निकट पाये जानेवाले समस्त द्वीपों की उत्पत्ति का मुख्य कारण महाद्वीपीय निमग्न तट का विस्तृत होना है। बिस्के की खाड़ी से अफ्रीका के सिरे तक मग्नतट सँकरा है। उत्तरी-पश्चिमी यूरोप के मग्नतट अधिक चौड़े हैं। इस महासागर के मग्नतटों पर कई सीमान्त सागर तथा असंख्य द्वीप पाये जाते हैं ।
मध्य अटलांटिक कटक (Mid-Oceanic Ridges) : अटलांटिक महासागर के मध्य में उत्तर दक्षिण दिशा में कटक स्थित है जिसे मध्य अटलांटिक कटक कहते हैं। यह कटक उत्तर में ग्रीनलैंड के तट से दक्षिण में बोवट द्वीप तक S की आकृति के 1440 किलोमीटर लम्बाई में फैली है। उत्तरी अटलांटिक महासागर में इस कटक के उत्तरी भाग को उत्तरी मध्यवर्ती अटलांटिक कटक अथवा डॉल्फिन उभार भी कहते हैं । आइसलैण्ड और स्कॉटलैंड के मध्य इस कटक को वियलेथोमसन कटक कहते हैं । इस कटक पर जल की गहराई मात्र 1,100 मीटर है। न्यूउण्डफालैण्ड और ग्रीनलैण्ड के मध्य इस तट को टेलीग्राफिक पठार कहा जाता है। उत्तरी अटलांटिक महासागर में 50° उत्तरी अक्षांश के निकट इस कटक पर जल की गहराई 2,000 से 4,000 मीटर तक पायी जाती है । 40° उत्तरी अक्षांश पर इस कटक का पूर्व में अफ्रीका तक विस्तार है । दक्षिणी हिन्द महासागर में इस कटक को दक्षिणी मध्यवर्ती कटक अथवा दक्षिणी अन्य महासागर उभार अथवा चैलेंजर उभार कहते हैं। 40° दक्षिणी अक्षांश निकट इस कटक की एक शाखा वालविस कटक अफ्रीका के निमग्न तट तक तथा इस कटक के निकट में दूसरी शाखा रायोग्राण्डे कटक, दक्षिणी अमरीका के तट पर फैली है। मध्यवर्ती अटलांटिक कटक का यद्यपि अधिकांश भाग जल में डूबा रहता है, किन्तु इस कटक की कई चोटियाँ समुद्र से ऊपर निकल आयी है । अजोर्स का पिको द्वीप इस कटक की सबसे ऊँची चोटी है । जो सागर तल से 7000 से 8000 फीट ऊपर उठा है।अटलांटिक व हिन्द महासागर की तलीय आकृतियाँ इसकी उत्पत्ति के विषय में पर्याप्त मतभेद है, महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त (वेगनर टेलर) के अनुसार इस कटक की उत्पत्ति तनाव के कारण तथा उत्तर एवं दक्षिणी अमेरिका के पश्चिम दिशा में प्रवाह के कारण मानी जाती है। इस तरह अटलांटिक महासागर में मध्यवर्ती कटक की स्थिति अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
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द्रोणी या बेसिन
मध्यवर्त्ती अटलांटिक कटक द्वारा अटलांटिक महासागर दो विस्तृत द्रोणियों में विभाजित हो जाता है । इन दो वृहद् द्रोणियों में पुनः कई छोटी-छोटी द्रोणियाँ भी पाई जाती है, जिनमें निम्न प्रमुख हैं:
- लेब्राडोर श्रेणी-उत्तर में ग्रीनलैंड के जलमग्न तट तथा दक्षिण में न्यूफाउलैंड उभार के बीच 4000 मीटर की गहराई तक 40° से 50° उत्तर अक्षांशों के बीच फैली है ।
- उत्तरी अमेरिका द्रोणी-उत्तरी अटलांटिक महासागर की सबसे बड़ी द्रोणी है, जिसका विस्तार 12° से 40° उत्तरी अक्षांशों के मध्य उत्तरी अमेरिका के तट से 55° पश्चिम देशान्तर के बीच 5000 मीटर की गहराई तक पाया जाता है ।
- ब्राजील द्रोणी-दक्षिण अटलांटिक महासागर में भूमध्य रेखा से 30° दक्षिण अक्षांश तथा दक्षिण अमेरिका के तट तथा पारा उभार के मध्य स्थित है |
- स्पेनिश द्रोणी-मध्य अटलांटिक कटक के पूर्व में आइबेरियन प्रायद्वीप के पास स्थित स्पेनिश द्रोणी का विस्तार 30° से 50° उत्तर अक्षांशों के बीच 5000 मीटर की गहराई तक है ।
- उत्तरी तथा दक्षिण कनारी बेसिन दो वृताकार द्रोणियों से मिलकर बनी है, जिसका विभाजन उच्च भाग द्वारा हुआ है।
- केपवर्ड द्रोणी-मध्य अटलांटिक कटक तथा अफ्रीका के मध्य 10° से 23½° उत्तरी अक्षांशों के बीच 5000 मीटर की गहराई तक विस्तृत है ।
- गायना द्रोणी – गायना कटक तथा सियरा लिओन के मध्य उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूरब दिशा में 4000 से 5000 मीटर की गहराई तक विस्तृत 1
- अंगोला द्रोणी-अफ्रीका के तट से प्रारम्भ होकर उत्तर- पूरब तक 5000 मीटर की गहराई तक फैली है से दक्षिण-पश्चिम दिशा में बालविस कटक
- केप द्रोणी– 25° से 45° दक्षिण अक्षांशें के मध्य अफ्रीका के पश्चिम में स्थित है ।
- अगुलहास द्रोणी– उत्तमाशा अन्तरीप के दक्षिण में 40° से 50° दक्षिण अक्षांश के मध्य इसका विस्तार अधिक पाया जाता है ।
अटलांटिक महासागर में स्थानों अर्थात् विभिन्न श्रेणियों से घिरी हुई बेसिन या द्रोणी पाई जाती है ।
महासागरीय गर्त
अटलांटिक महासागर के नितल की एक अन्य विशेषता यह है कि यहाँ रैखिक महासागरीय गतों की संख्या बहुत कम है । इसका प्रमुख कारण अटलांटिक तट का अभिनव बलन की रेखाओं से लगभग वंचित रहना बताया गया है । अन्ध महासागर में 19 गर्त पाये जाते हैं, जिनमें निम्न चार गर्त अधिक महत्वपूर्ण है-
- पोर्टो रिको गर्त्त-पोर्टो रिको के ठीक उत्तर में एक गर्त पाया गया है, जिसे पोर्टो रिको गर्त कहते हैं और जिसकी गहराई 4812 फैदम है । इस महासागर का सबसे गहरा गर्त है ।
- रोमांश गर्त्त-मध्य अटलांटिक श्रेणी के आर-पार रोमांश गर्त पाया जाता है जिसकी गहराई 4030 फैदम है।
- नरेश गर्त्त-यह उत्तरी अन्ध महासागर के उत्तरी अमरीकन द्रोणी के उत्तर में स्थित है। इसकी गहराई 1 5,000 मीटर है। अटलांटिक व हिन्द महासागर की तलीय आकृतियाँ
- दक्षिण सैनविच खाई– दक्षिणी सैनविच द्वीपपुंज के निकट 4000 फैदम से अधिक गहराई वाला वक्ररेखीय खाई को दक्षिणी सैनविच खाई कहते हैं ।
- इनके अतिरिक्त वाल्डिविया, बुचानन, मोसले, चुन, वार्टलेट तथा मोनाको गर्त्त भी इस महासागर में स्थित है ।
सीमान्त / तटवर्त्ती सागर (Marginal Seas)
दक्षिणी अटलांटिक महासागर में मग्नतटों का प्रायः अभाव है। उसी प्रकार वहाँ तटवर्त्ती सागरों की भी संख्या बहुत कम है । इसके विपरीत उत्तरी अटलांटिक महासागर के पूर्वी तथा पश्चिम तटों पर अनेक तटवर्ती समुद्र पाये जाते हैं । पूर्व में भूमध्य सागर, उत्तर सागर, पश्चिमी भाग में बेफिन की खाड़ी, हड़सन की खाड़ी, मैक्सिको की खाड़ी, कैरेबियन सागर मुख्य सीमान्त सागर हैं । महत्त्वपूर्ण सागर
(i) भूमध्य सागर – यह सागर अन्ध महासागर से जिब्राल्टर जलसंधि से जुड़ा है । भूमध्य सागर से जुड़े अन्य सागर काला सागर, एड्रियाटिक सागर तथा एजियन सागर है। भूमध्य सागर में भी दो कटक पायी जाती है, उत्तर-दक्षिण दिशा में एक कटक पायी जाती है, दूसरी कटक दक्षिण इटली और अफ्रीका के मध्य में पायी जाती है । इटली और ग्रीस के मध्य आयोजियन धँसाव तथा लेवेण्टाइन धँसाव पाये जाते हैं। भूमध्य सागर के पश्चिमी भाग में मग्न तट 80 से 240 किलोमीटर चौड़ा है ।
(ii) कैरेबियन सागर तथा मेक्सिको की खाड़ी-उत्तरी अन्ध महासागर में कैरेबियन सागर और मेक्सिको की खाड़ी, अन्ध महासागर के प्रमुख सीमान्त सागर है । इन दोनों कैरेबियन सागरों और मैक्सिको की खाड़ी के मध्य 1,600 मीटर गहरी कटक है। मेक्सिको द्रोणी का क्षेत्रफल 16 लाख वर्ग किलोमीटर और कैरेबियन द्रोणी का 19 लाख वर्ग किलोमीटर है। उत्तरी सागर, बिस्के की खाड़ी, बेफिन की खाड़ी तथा गिनी की खाड़ी अन्य सीमांत सागर है ।
द्वीप (Island)
अटलांटिक महासागर में अपेक्षाकृत कम द्वीप पाए जाते हैं। ब्रिटिश द्वीपसमूह एवं न्यूफाउण्डलैंड वास्तव में महाद्वीप मग्नतटों के ही ऊँचे भाग हैं। पश्चिमी द्वीप समूह का निर्माण कई द्वीप-चापों से मिलकर हुआ है, जो स्थलखण्ड से अधिक दूर नहीं है । दूसरी ओर, आइसलैंड तथा फीरोज ऐसे द्वीप हैं, जो उत्तरी स्कॉटलैंड ग्रीनलैंड के बीच की अन्तःसमुद्री श्रेणी के जल से ऊपर उठे हुए भाग हैं। इसी प्रकार दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी सिरे तथा अन्टार्कटिका के ग्राहमलैंड प्रायद्वीप के मध्य फैली हुई अनेक विषम पहाड़ियों तथा पठारों के अधिक टाँचाई वाले तथा जल के बाहर निकले भागों से अनेक दक्षिणी द्वीपों का निर्माण हुआ है । इनमें फाकलैंड्स, साउथ अर्कनीज, शेटलैंड्स, जार्जिया तथा सैनविच, द्वीप पुंज विशेष उल्लेखनीय है ।
वास्तविक अर्थों में महासागरीय द्वीपों का निर्माण मध्य अटलांटिक श्रेणी के ऊँचे उठे हुए भागों से हुआ है । उत्तरी अटलांटिक में एजोर्स द्वीप तथा दक्षिण में असेंसन तथा ट्रीस्टन द कुन्हा आदि का निर्माण इसी प्रकार हुआ है । मध्य अटलांटिक श्रेणी के पूर्व में स्थित सेन्ट हेलना द्वीप सीधे महासागरीय नित्तल से उठा हुआ है। इसी प्रकार श्रेणी के पश्चिम में स्थित ट्रिनीडाड द्वीप नित्तल से ऊपर उठा है । दूसरी ओर प्रवाल निर्मित द्वीप समूह वर्मूडा है । इसका निर्माण उत्तरी-पश्चिमी अटलांटिक बेसिन में जलमग्न ज्वालामुखी शंकुओं के ऊपर निर्मित प्रवालभित्तियों से हुआ है । मोरक्को के तट से कुछ दूर स्थित मदीरा द्वीप महासागर के नित्तल पर होनेवाले ज्वामुखी विस्फोट से निकले पदार्थों से निर्मित हुआ है । सबसे ऊंचे पर्वत शिखर पीको रिवो की ऊँचाई 6056 फीट है।