परिचय (Introduction)
महासागरीय नितल का रूप महाद्वीपीय किनारे से लेकर अगाध गहराई तक भिन्न-भिन्न होता है। महासागरों की औसत गहराई 3,800 मीटर तथा स्थलीय भागों की औसत ऊँचाई 840 मीटर है। स्थलीय भागों की ऊँचाई एवं महासागरों की गहराई को उच्चतामित्तीय वक्र (Hypsometric Curve) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।महाद्वीपीय किनारे से लेकर सागर की अगाध गहराई तक महासागरीय नितल के प्रमुख उच्यावय स्वरूप क्रमशः महाद्वीपीय मग्न तट, महाद्वीपीय मग्न ढाल, गहन सागरीय मैदान, महासागरीय कटक तथा महासागरीय गर्त्त हैं।
महासागरीय नितल के उच्चावच की उत्पत्ति (Origin of Major Ocean Relief)
महासागरीय नितल के प्रमुख उच्यावच में अनेक विभिन्नताएँ मिलती हैं, उसी तरह इन सभी की उत्पत्ति इतिहास में भी भिन्नता मिलती है । सभी उच्यावचों की उत्पत्ति किसी न किसी भौगोलिक प्रक्रमों के अनुसार ही संभव हुआ है।
महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf)
महाद्वीपों के किनारे का जो भाग महासागर के जल में डूबा रहता है और जिसका ढाल 1° से 30 तक एवं गहराई 100 फैदम अथवा 180 मीटर (1 फैदम = 1.8 मीटर या 6 फीट) होती है, महाद्वीपीय मग्नतट कहलाता है । महाद्वीपों के किनारे के समीप का भू-भाग यदि पर्वतीय होता है तो मग्नतट कम चौड़े होते हैं और किनारे का समीप का भू-भाग यदि मैदानी होता है तो वहाँ का मग्नतट अपेक्षाकृत अधिक चौड़ा होता है । सबसे अधिक चौड़ा मग्नतट साइबेरिया के किनारे के साथ-साथ उत्तरी ध्रुव सागर में पाया जाता है । संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर इसकी चौड़ाई 100-125 किलोमीटर है तो भारत के पूर्वी तट पर मग्नतट की औसत चौड़ाई 70 किलोमीटर है । दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर महाद्वीपीय मग्नतट लगभग अनुपस्थित है ।
निमग्न तट की चौड़ाई में भिन्नता के कारण : निमग्न तट का विस्तार महाद्वीपों के तटों पर इस प्रकार एक समान नहीं पाया जाता है। निमग्न तटों की चौड़ाई पर तटीय भागों के उच्यावच का नियंत्रण रहता है। जनों पर ऊँचे पर्वतीय भाग पाये जाते हैं वहाँ निमग्न तट सँकरा पाया जाता है। जैसा कि दक्षिणी अमरीका के पश्चिमी तट पर पाया जाता है । यहाँ पर एण्डीज पर्वत के कारण, पश्चिमी तट पर निमग्न तट केवल 16 किलोमीटर चौड़ा है। जहाँ पर तटवर्ती भाग पर मैदान पाये जाते हैं, वहाँ के तट के निकट निमग्न तट अधिक चौड़ाई में पाये जाते हैं, जैसे उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट पर निमग्न तट की चौड़ाई 96 से 120 किलोमीटर पाई जाती है ।
मग्नतटों की उत्पत्ति : मग्न तटों के विस्तार और रचना की भिन्नता के कारण इनकी उत्पत्ति काफी विवादास्पद है । मग्नतटों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विद्वानों ने अपने अलग-अलग मत प्रस्तुत किये हैं, किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं है कि विश्व के विभिन्न भागों में पाये जाने वाले मग्नतटों की रचना भिन्न-भिन्न प्रक्रमों के द्वारा हुई है । मग्नतट की उत्पत्ति के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों के मत-
- सागर तट की भूमि के अवतलन से मग्नतट की उत्पत्ति : अनेक विद्वानों का मत है कि भूनिर्माणकारी हलचलों से सागरतट के अवतलन में निमग्न तट का निर्माण हुआ होगा ।
- सागर तल के बढ़ जाने से मग्नतटों की उत्पत्ति : महासागरों में जल की वृद्धि के कारण सागरीय जल महाद्वीपों के तटवर्ती भागों पर फैल जाने से मग्नतटों की उत्पत्ति हुई होगी । कुछ विद्वानों के अनुसार हिमयुग की हिम के पिघल जाने से सागरीय जल में वृद्धि हुई होगी और इस प्रकार निमग्न तटों की उत्पत्ति हुई होगी।
- निक्षेप से निमग्न तट की उत्पत्ति : अनेक वैज्ञानिकों का मत है कि मग्नतटों की उत्पत्ति निक्षेपण क्रिया द्वारा हुई होगी । अनाच्छादन के अभिकर्त्ता जैसे- हिमानी नदियाँ, भूमिगत जल महाद्वीपों से पदार्थ अपरदित कर सागरों में जमा करते रहते हैं। इस प्रकार का शैल-चूर्ण समुद्रतट के निकट जमा होता रहता है, जिससे मग्नतट का निर्माण होता है । अनेक बड़ी-बड़ी नदियाँ अपने साथ लायी सामग्री को समुद्रतल पर जमा करती है और मग्नतट के निर्माण में सहायता करती है । जैसे- अमेजन नदी अपने मुहाने से लगभग 480 किलोमीटर तक अन्ध महासागर के जल में जलोढ़ तथा कीचड़ आदि मिला देती है, जो धीरे-धीरे सागर तलों में जमा होती रहती है और महाद्वीपीय मग्नतट का निर्माण होता है।
- अपरदन द्वारा मग्नतटों की उत्पत्ति : महासागरीय तरंगें तथा धाराएँ महाद्वीपों के तटीय भागों पर अपने प्रभाव से कटाव करती रहती हैं और महाद्वीपों के तट को निरन्तर समतल करते रहती है, जिससे मग्नतट का निर्माण होता है । अनेक विद्वानों का मत है कि इस प्रकार अपरदन द्वारा निर्मित मग्नतट एक सँकरी पट्टी के रूप 1 में ही निर्मित हो सकती है, क्योंकि गहराई में वृद्धि के साथ-साथ तरंगों का प्रभाव भी कम हो जाता है।
- अपरदन एवं निक्षेपण की संयुक्त क्रियाओं से मग्नतट की उत्पत्ति : शेपर्ड के मतानुसार, कुछ मग्नतटों की रचना अपरदन एवं निक्षेपण के सम्मिलित प्रभाव के फलस्वरूप होती है । ऐसे मग्नतटों की चौड़ाई अधि क होती है । पूर्वी एशिया के कुछ मग्नतटों का निर्माण इसी प्रकार हुआ था। अतीत में इन मग्नतटों के किनारे द्वीपों के चाप थे, जो कालान्तर में अपरदित होकर जलमग्न हो गये । इस प्रकार की घिरी हुई द्रोणी में निक्षेपण के लिए अनुकूल दशाएँ पायी जाती हैं और इस प्रकार निर्मित मग्नतट निक्षेपणात्मक होते हैं और उनके किनारे पर ठोस शैलें मिलती हैं । महासागरीय उच्चावच की उत्पत्ति केवल निक्षेपण तथा केवल अपरदन द्वारा निमग्न तट के निर्माण की संभावना कम प्रतीत होती है । निमग्न तट के निर्माण में दोनों ही क्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं और दोनों के सहयोग से ही निमग्न या मग्न तट का निर्माण होता है ।
- महासागरीय चबूतरों पर मग्नतटों की उत्पत्ति : कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि प्रारम्भ में महाद्वीपों के तटों पर पाये जाने वाले चबूतरों के समान भूखण्ड निकले रहते हैं । यह चबूतरे सागरीय तरंगों द्वारा काटे जाते हैं अथवा इन चबूतरों पर तरंगों द्वारा निक्षेप होता रहता है जिसके कारण इन चबूतरों के ऊपर उथले सागरीय भागों का निर्माण होता है जो निमग्नतटों के निर्माण में सहयोग प्रदान करते हैं ।
- भ्रंशन के कारण मग्नतट की उत्पत्ति : कुछ विद्वानों का मानना है कि कभी-कभी तटों के किनारे साधारण भ्रंशन के कारण दरारें उत्पन्न हो जाती है, जैसा कि लाल सागर अथवा क्वींसलैंड के तटवर्ती क्षेत्र में हुआ है । भ्रंशन के फलस्वप महाद्वीपीय किनारों के टूट कर गिर जाने से वहाँ कालान्तर में मग्नतटों का निर्माण हो जाता है ।
- संवाहनिक तरंगों के कारण मग्नतट की उत्पत्ति : कुछ मग्नतटों की उत्पत्ति का कारण पृथ्वी में संवाहनिक तरंगों का उत्पन्न होना माना जाता है। जहाँ कहीं तट के निकट सियाल और सिमा के असमान वितरण के कारण जब संवहन तरंगें ऊपर उठती हैं तो उसके फलस्वरूप तट के समानान्तर भूमि का धँसाव होता है । उस धँसे हुए अन्त: समुद्री भाग पर धरातल के अपरदन से प्राप्त तलछटों का जमाव होता रहता है। इसके फलस्वरूप महाद्वीपीय भू-भाग क्रमशः ऊपर उठता है और महाद्वीपीय मग्नतटों का निमज्जन होता है।
- डेल्टा के कारण मग्नतट की उत्पत्ति : कुछ नदियों के मुहाने पर डेल्टा का निर्माण होता है । मिसीसिपी डेल्टा में काफी गहराई तक मलवे का निक्षेप पाया जाता है। इन निक्षेपों को समुद्र में उत्पन्न तरंगें तट के सहारे जमा कर देती है । इस प्रकार डेल्टा के विकास के साथ-साथ महाद्वीपीय मग्नतटों की रचना भी हो जाती है।
- हिमयुग के कारण मग्नतट की उत्पत्ति : डेली महोदय ने कुछ मग्नतटों की उत्पत्ति एवं विकास का कारण हिमयुग में समुद्र तल का लगभग 38 फैदम नीचे गिर जाना बतलाया है । समुद्रतल के नीचा हो जाने के कारण महाद्वीपों के किनारे के जलमग्न भाग स्थल रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इन जलविहीन स्थल-खण्डों पर हिमानी के द्वारा होनेवाली अपरदन तथा निक्षेपण क्रियायें विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण कर देती है । पुनः हिमयुग के अवसान के उपरान्त हिमानी का निवर्त्तन हुआ और समुद्र तल ऊपर उठ गया जिससे ये स्थलखण्ड पुनः जलमग्न हो गये । इस प्रकार अधिक चौड़े मग्नतटों का विकास हुआ ।
महाद्वीपीय मग्न ढाल (Continental Slope)
महाद्वीपीय मग्नतट और गहन सागरीय मैदान के बीच तीव्र ढाल वाले भाग को महाद्वीपीय मग्न ढाल कहते । इसका औसत ढाल 2° से 5° तक तथा गहराई 200 से 300 मीटर तक होती है । इसका सबसे अधिक विस्तार अटलांटिक महासागर में है ।
उत्पत्ति : मग्न ढाल की उत्पत्ति के बारे में भी भिन्न मत प्रचलित है ।
- विवर्तनिक हलचल : अनेक भूवैज्ञानिक इन महासागरीय ढालों की उत्पत्ति विवर्तनिक क्रियाओं, इनके हलचलों से हुई है। भ्रंशन के कारण मग्न ढालों पर गहरी खाइयाँ तथा अन्तः सागरीय कन्दराएँ निर्मित हो जाती है ।
- वलन एवं निक्षेपण : कुछ विद्वानों का मानना है कि कहीं-कहीं महाद्वीपीय निमग्न तट में सर्वप्रथम वलन उत्पन्न होता है । वलन के पश्चात् धीरे-धीरे लम्बे समय तक वलन में निक्षेपण की क्रिया होती है । अवसादों के एकत्रीकरण से ढालों की उत्पत्ति होने लगती है । अतः इस मत के अनुसार सर्वप्रथम महाद्वीपीय मग्नतट में वलन एवं लम्बे समय तक एकत्रित हुऐ निक्षेप के कारण महाद्वीपीय ढालों की उत्पत्ति होती है।
- सागरीय तरंग का अपरदन : इस मत के अनुसार वैज्ञानिकों का मानना है कि सागरीय तरंगों के अपरदन से ढाल, महाद्वीपीय मग्न ढाल का निर्माण होता है । किन्तु यह कारण आज मान्य नहीं है ।
इसके अलावा भी महाद्वीपीय मग्न ढाल की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धान्त हैं । कुछ विद्वानों के अनुसार मग्न ढालों का निर्माण ऐसे प्राचीन स्थल खण्डों के निम्नावलन से हुआ है जो पहले समतलप्राय मैदान थे । उत्तरी अमेरिका के अटलांटिक तट की ओर पाये जाने वाले मग्नतट अप्लेचिया नामक प्राचीन भूखण्ड के किनारे हैं। शेपर्ड ने मग्न ढालों की उत्पत्ति की अनेक संभावनाओं को स्वीकार करते हुए पटल विरूपण द्वारा इसकी उत्पत्ति पर विशेष बल दिया है ।
अतः सर्वाधिक मान्यता प्राप्त सिद्धान्त आज भी विवर्तनिक हलचल सिद्धान्त को ही माना जाता है ।
गहन सागरीय मैदान (Deep Sea Plains)
महासागरीय मैदान का विस्तार मुख्य रूप से महादेशीय ढाल और मध्य महासागरीय कटकों के बीच पाया जाता है और महासागरों में सम्पूर्ण क्षेत्रफल का 41.8% भाग पर फैले हैं। हिन्द्र महासागर में इनका विस्तार सबसे अधि क है, जहाँ वे हिन्द महासागर के सम्पूर्ण क्षेत्रफल का 49.2% भाग पर पाये जाते हैं । महादेशीय छज्जों के अधि क विस्तार के कारण, अटलांटिक महासागर का केवल 38% भाग महासागरीय मैदान के अन्तर्गत आता है । इनकी सामान्य गहराई 3,000 से 6,000 मीटर है ।
इनका अधिकांश भाग समतल और आकृतिहीन है और इन पर महीन तलछटों का आधा किलोमीटर से 1 किलोमीटर तक मोटा जमाव पाया जाता है । इन तलछटों में सिन्धु पंक की प्रधानता है । ये सिन्धु पंक मुख्यतः समुद्री जन्तुओं तथा पौधों के अवशेष और ज्वालामुखी धूल द्वारा निर्मित है, किन्तु इनकी बनावट गहराई के साथ बदलती जाती है । सबसे ऊपर अर्थात् कम गहराई में कैल्शियम कार्बोनेट की प्रधानता मिलती है, उससे नीचे सिलिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है और सबसे अधिक गहराई में लाल क्ले पाया जाता है । महासागरीय मैदान के तल में कभी-कभी छोटी-छोटी पहाड़ियाँ मिलती है ।
महासागरीय मैदान के धरातल से कहीं-कहीं अन्तः सागरीय ज्वालामुखी अचानक खड़ी ढाल पर ऊपर 2700 से 3700 मीटर ऊँचे उठते हैं। इन्हें सी माउन्ट कहते हैं। ये प्रायः समुद्र की सतह से हजारों फीट नीचे रहता है । किन्तु जहाँ ज्वालामुखी क्रिया अधिक तीव्र या लम्बे समय तक होती है, वहाँ ये समुद्र सतह से ऊपर उठकर ज्वालामुखी द्वीपों का निर्माण करते हैं । प्रशान्त महासागर में हवाई द्वीप समूह तथा अटलांटिक महासागर में कैनरीज द्वीप समूह इसके उदाहरण हैं । प्रशांत महासागर में कई ऐसे सी-माउन्ट मिलते हैं जिनका शीर्ष चपटा है और किनारा तीव्र ढाल वाले हैं उन्हें गुयाँ कहते हैं। कहीं-कहीं महासागरीय बेसिन तल पर ऐसे क्षेत्र मिलते हैं, जो निकटवर्ती महासागरीय मैदान से कई सौ फीट ऊँचे हैं और जिनका क्षेत्रफल हजारों वर्गमील हैं, इन्हें महासागरीय उठान कहते हैं ।
प्लेट टेक्टानिक्स एवं सागर नितल प्रसरण के अनुसार ऐस्थनोस्फीयर से तरल पदार्थ मध्य महासागरीय कटक पर ऊपर उठता है, जिससे नये समुद्र तल का निर्माण होता है। यहाँ प्लेटो का विलगाव होता है। हैरी हेस के अनुसार समुद्र तल गतिशील है और मध्य सागरीय कटकों पर संवाहन धाराओं द्वारा पृथ्वी के मैटल से गर्म मैग्मा ऊप उठता है और वहाँ से दोनों किनारों की ओर फैलता है और फिर महादेशों के किनारे स्थित प्रत्यावर्तन करते हुए ट्रेन्ची का निर्माण करता है । इस प्रसार विधि द्वारा ही महासागरीय तली के अनेक स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। यह सिद्धान्त ही सर्वाधिक उपयुक्त सिद्धान्त है।
मध्य महासागरीय कटक (Mid Oceanic Ridges)
मध्य महासागरीय कटक पृथ्वी की विशालतम स्थलाकृतियों में से एक है । इनकी लम्बाई रॉकी व एण्डीज या आल्पस व हिमालय पर्वतमालाओं के क्रम से भी अधिक है। ये सागर तल के नीचे 5000 या 6000 फीट पर पायी जाती है । आधार से शिखर तक इनकी ऊँचाई 10,000 से 12,000 फीट है। इनका विस्तार उत्तर से दक्षिण की ओर पाया जाता है ।
उत्पत्ति : मध्य महासागरीय कटक वास्तव में उस वृहत् कटक समूह क्रम का एक भाग है जो भूमण्डल के सभी महासागरों में फैला हुआ है। यह कटक समूह क्रम वास्तव में एक-एक विभंग कटिबन्ध है । इसके सहारे ही आन्तरिक शक्तियाँ सक्रिय होकर महाद्वीपों का विस्थापन करती है। इनका निर्माण पृथ्वी के गर्त से उठनेवाली गर्म संवहनिक धाराओं के साथ लाए तरल पदार्थों से हुआ है। पृथ्वी के गर्भ में ताप संग्रह होते-होते काफी अधिक हो जाता है, तब इसके सम्पर्क से भूगर्भ की शैलें द्रवित हो उठती हैं । द्रव रूप शैलों में संवाहन धाराएँ उत्पन्न करती हैं। संवाहन तरंगें ऊपर आकर उत्तर व दक्षिण को चलने लगती है ।
ये तरंगे भूपटल के नीचे उन स्थानों पर आमने-सामने से आकर मिलती है, जहाँ थल-भाग एवं जल-भाग का संगम होता है। तरंगें नीचे की ओर जाती है जिससे तट के समीप गहरे गर्त्त बन जाते हैं तलछत यहाँ जमते रहती है, जिससे कालान्तर में मध्य महासागरीय कटक का निर्माण हो जाता है । प्रशान्त महासागर में मध्यवर्ती कटक नहीं पायी जाती है । कई स्थानों पर यह कटक पाई जाती है। जैसे- अलबट्रास पठार कटक । अन्ध-महासागर में यह कटक उत्तर में ग्रीनलैंड के तट से दक्षिण बावेट द्वीप तक S की आकृति के 1440 किलोमीटर लम्बाई में फैली है । हिन्द महासागर में उत्तर में प्रायद्वीप भारत के निमग्न तट से दक्षिण में अन्टार्कटिका महाद्वीप तक पाया जाता है।
इस तरह मध्य महासागरीय कटक सभी महासागरों में फैली है। यह वास्तव में एक समूह क्रम ही है जिसका निर्माण पृथ्वी के गर्भ से उठनेवाली संवहन तरंगों के फलस्वरूप होता है ।
महासागरीय गर्त्त (Oceanic Deeps )
ये महासागरीय नितल के सबसे अधिक गहरे भाग होते हैं। महासागरीय नितल पर स्थित तीव्र ढाल वाले लम्बे, पतले और गहरे भाग को खाई अथवा गर्त्त कहते हैं। इनकी औसत गहराई 5,000 मीटर से अधिक होती है। इनकी सर्वाधिक संख्या प्रशान्त महासागर में है । 32 उत्पत्ति अनेक विद्वानों का मत है कि इनकी उत्पत्ति विवर्तनिक शक्तियों से हुई है। जिन समुद्री तटों के निकटवर्ती क्षेत्रों में भूकम्प आया करते हैं अथवा ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं अथवा वे ज्वालामुखी क्षेत्र रहे हैं, वहाँ ये गर्त्त अधिक संख्या में पाई जाती है । भूकम्प एवं ज्वालामुखी अधिकेन्द्रों का सम्बन्ध प्रायः इन गत्तों से पाया गया अतः इनकी उत्पत्ति में पटल विरुपणी शक्तियों का योगदान रहा है ।
पृथ्वी की आंतरिक हलचलों से उत्पन्न भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्रिया से महासागरीय क्षेत्रों में खड्ड या गहरी खाइयाँ बन जाती है इसे ही महासागरीय गर्त्त कहते हैं। महासागरीय नितल के लगभग 7% भाग) पर महासागरीय गर्त्त का विस्तार है । मेरियाना विश्व का सबसे गहरा गर्त है । यह गर्न प्रशान्त महासागर में है । (प्यूटोरिको अटलांटिक महासागर एवं जावा- हिन्द महासागर का सबसे गहरा गर्त है । इस तरह महासागरीय गर्त्त की उत्पत्ति पृथ्वी के आंतरिक हलचलों के कारण होती है ।