अपक्षय और अपरदन के प्रकार : Types of weathering and erosion

अपक्षय और अपरदन के प्रकार : Types of weathering and erosion – आंतरिक शक्तियों द्वारा धरातल पर उत्पन्न किए गए असमानताओं को दूर करने के लिए वाह्य शक्तियां कार्यरत रहती हैं। यह शक्तियां दो तरह से कार्य करती हैं ।अपक्षय जब चट्टाने एक ही स्थान पर भौतिक तथा रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा टूट-फूट कर विघटित हो जाती हैं तो इस क्रिया को अपक्षय कहते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें चट्टानों के अंदर रासायनिक प्रतिक्रिया होती है। जिससे चट्टाने ढीली होकर कमजोर हो जाती हैं और आसानी से टूट जाती हैं। इस क्रिया में मुख्यतः धरातल के ऊपरी भाग में प्राकृतिक विघटन और रसायनिक क्रियाओं के द्वारा चट्टानों का टूटना फूटना होता है।

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अपक्षय के प्रकार:-Types of weathering in hindi 

भौतिक अपक्षय

चट्टानों के भौतिक क्रियाओं द्वारा टूट फुटकर विघटित होने के प्रक्रिया को भौतिक अपक्षय कहते हैं। इसमें किसी भी प्रकार के रसायनिक कारक का सहयोग नहीं होता है। मरुस्थलीय क्षेत्रों में दैनिक तापांतर के कारण तथा शीत क्षेत्रों में पाला के कारण भौतिक अपक्षय अधिक होता है।

रेगिस्तानों में स्वच्छ आकाश और वायु के शुष्कता के कारण सूर्य की किरणे सीधे चट्टानों पर पड़ती है। जिससे चट्टानों का ऊपरी आवरण गर्म होकर फैलता है। रात के समय तापमान बहुत कम हो जाता है, जिससे चट्टाने सिकुड़ जाती हैं। इस क्रिया के बार-बार होने से चट्टान बड़े-बड़े टुकड़ों में टूट जाती हैं। इस क्रिया को खंड विच्छेदन कहा जाता है।

मरुस्थलीय क्षेत्रों वाले मानसूनी जलवायु प्रदेशों में तापांतर की अधिकता के कारण चट्टानों की ऊपरी सतह अत्याधिक गर्म हो जाती है जबकि अंदर का भाग ठंडा रहता है। चट्टानों का ऊपरी परत बार-बार फैलता सिकुड़ता है जिससे यह प्याज के छिलके की तरह अलग होता जाता है। इस क्रिया को अपदलन या अपपत्रण कहा जाता है।

यह मुख्य रूप से ग्रेनाइट जैसे चट्टानों में होती है। जब किसी क्षेत्र के चट्टानों में खनिजों में भिन्नता पाई जाती हैं तो उनके फैलने और सिकुड़ने की दर भी अलग-अलग होती है। इस कारण से चट्टान छोटे-छोटे कणों में टूट जाते है। इस क्रिया को कणिकामय विखंडन कहते हैं। खंड विखंडन तथा कणिकामय विखंडन के द्वारा ही गर्म मरुस्थल में बालू का निर्माण होता है।

ठंडे प्रदेशों में तथा उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में चट्टानों के दरारों के बीच पानी जमा हो जाता है जो रात्रि में जम जाता है। जिससे उसका आयतन बढ़ जाता है जिससे दरार फैल जाते हैं। इस क्रिया से चट्टान बड़े-बड़े टुकड़ों में टूट जाते है। इस क्रिया को तुषार क्रिया कहते हैं। खड़ी ढाल वाली पहाड़ी क्षेत्रों में इस तरह का अपक्षय अधिक देखने को मिलता है। पहाड़ी क्षेत्रों में चट्टाने टूट कर ढालों के नीचे जमा होते जाते हैं। इस जमाव को भग्नावशेष राशि अथवा टैलस कहा जाता है। यह मुख्य रूप से तुषार क्रिया तथा गुरुत्वाकर्षण का परिणाम होता है।

भौतिक अपक्षय में जीव जंतु तथा पौधे भी अपना योगदान देते हैं। बिलों में रहने वाले चूहे खरगोश तथा अन्य जीव यांत्रिक ढंग से नर्म चट्टानों को तोड़कर बिल और दरार बना देते है। भूमि में बनने वाले इन बिलों और दरारों में अन्य साधनों से विखंडन होता है। इसी प्रकार पौधों की जड़े चट्टानों की दरारों में प्रवेश कर उनको फैलाती हैं जिससे चट्टान टूट कर बिखर जाते हैं।

रसायनिक अपक्षय

किसी स्थलखंड के खनिजों के रासायनिक परिवर्तनों द्वारा चट्टानों के टूटने को रसायनिक अपक्षय कहते हैं। इसमें विभिन्न कारणों से चट्टानों के अवयवों में रसायनिक परिवर्तन होता है जिससे चट्टानें कमजोर हो जाते हैं तथा उनका आसानी से क्षरण हो जाता है। तापमान और आर्द्रता जैसे कारक रसायनिक अपक्षय की प्रक्रिया को तीव्र कर देते हैं। इसीलिए विश्व के उच्च ताप और आद्रता वाले प्रदेशों में रसायनिक अक्षय अधिक होता है।

ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य गैसों का सीधा प्रभाव चट्टानों पर नहीं पड़ता है किंतु यह जल के साथ प्रतिक्रिया कर सक्रिय रसायनिक कारक बन जाते हैं। रासायनिक प्रक्रिया के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं:-

जल योजन या जल अपघटन

जल तथा खनिजों के रसायनिक संयोग को जल अपघटन कहते हैं। इस प्रक्रिया में चट्टानों के उपस्थित खनिज जल को सोख लेते हैं। जिससे उनमें रासायनिक परिवर्तन होने लगता है। जल को सोख लेने से चट्टाने कमजोर हो जाती हैं तथा जल्दी विघटित हो जाती हैं। ग्रेनाइट चट्टानों का फेल्सपार खनिज में परिवर्तित होना जलयोजन प्रक्रिया का ही परिणाम है। कुछ चट्टानों में उपस्थित खनिज जल में बह जाते हैं इस कारण से भी उनका विघटन हो जाता है।

ऑक्सीकरण

ऑक्सीजन का जल के साथ रसायनिक मेल ऑक्सीकरण कहलाता है। यह क्रिया मुख्य रूप से लोहे युक्त चट्टानों पर होती है। नमी बढ़ने से लोहा युक्त खनिजों में रसायनिक क्रिया होती है जिससे ऑक्साइड का निर्माण होता है। इस कारण चट्टाने कमजोर हो जाती हैं। तापमान के परिवर्तन होने से ऑक्सीकरण की दर भी परिवर्तित होती है।

कार्बनिकरण

चूना पत्थर वाले क्षेत्रों में रसायनिक अपक्षय अधिक होता है, क्योंकि वहां कार्बनिकरण की प्रक्रिया अधिक होती है। जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड मिलकर कार्बनिक अम्ल बनाते हैं। यह कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम एवं लोहे जैसे तत्वों वाली खनिजों में सक्रिय होता है। ये तत्व कार्बनिक अम्ल में घुल जाते हैं जिनसे चट्टाने कमजोर हो जाते हैं और उनका विखंडन हो जाता है ।

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अपरदन के प्रकार ( types of Erosion)

अपरदन की क्रिया में गतिशील कारक सम्मिलित होती हैं। ये कारक चट्टानों को तोड़फोड़ कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक परिवहन भी करते हैं। इस क्रिया में भाग लेने वाले कारकों को अपरदन के कारक कहते हैं। ये कारक प्रवाहित जल, नदियां, भूमिगत जल, हिमानी, परि हिमानी, पवन तथा सागरीय लहरें आदि प्रमुख है।अपरदन के अंतर्गत मुख्य रूप से तीन प्रक्रियाये सम्मिलित होती हैं:-

परिवहन

इनके द्वारा अपरदन के कारक चट्टानों को तोड़फोड़ कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते हैं।

अपघर्षण

अपरदन की क्रिया में चट्टानों के टुकड़े एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाए जाते हैं जो धरातल को घिसते और खरोचते हैं इस क्रिया को ही अपघटन कहा जाता है।

निक्षेप

अपरदन के कारक चट्टानों के टुकड़ों को किसी स्थान पर जमा कर देते हैं जिससे नई स्थलाकृतियो का निर्माण होता है। इस जमा करने की प्रक्रिया को ही निक्षेप कहा जाता है।

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