महासागरीय नितल के उच्चावच : Oceanic reliefs :- धरातल पर महाद्वीप और महासागरों का वितरण बहुत असमान पाया जाता है । पृथ्वी पर इसके कुल क्षेत्रफल का तीन चौथाई भाग पर जल का विस्तार है। एनसाइक्लोपिडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, धरातल का कुल क्षेत्रफल 50.99 करोड़ वर्ग कि मी है । जिसमे 36.10 करोड़ वर्ग किमी अर्थात् लगभग 71% क्षेत्रफल पर जल का विस्तार है तथा शेष 14.88 करोड़ वर्ग कि मी 29% क्षेत्र पर स्थल का विस्तार है । इस प्रकार धरातल पर थल व जल का अनुपात 1 : 2.43 है ।
ग्लोब के उत्तरी गोलार्द्ध में 60.7% क्षेत्र पर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में 80.9% क्षेत्र जल का विस्तार है । स्थल की अधिकता के कारण उतरी गोलार्ध को ‘स्थलीय गोलार्द्ध’ तथा जल की अधिकता के कारण दक्षिणी गोलार्ध को ‘जलीय गोलार्द्ध’ कहते है।
सेलिसबरी के वर्गीकरण के अनुसार, महाद्वीप और महासागर प्रथम श्रेणी के उच्चावच हैं। धरातल के स्थलीय भाग की औसत ऊँचाई 840 मीटर है, वही महासागरों की औसत गहराई 3800 मीटर पाई जाती है।
उच्चतादर्शी वक्र – धरातल की औसत ऊँचाई तथा गहराई को उच्चतादर्शी वक्र के माध्यम से प्रदर्शित करते है। इस वक्र से धरातल के उच्चतम भाग से लेकर महासागर के निम्नतम गहराई का प्रदर्शन किया जाता है।
भूगोलवेत्ता मरे के अनुसार, सम्पूर्ण पृथ्वी का केवल 1% क्षेत्रफल 12000 फीट से अधिक ऊँचा है जबकि 46% क्षेत्रफल 12000 फीट से अधिक गहरा है ।
महासागरीय नितल के उच्चावच : Oceanic reliefs
1 महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf)
महासागरीय तट के पास जल के नीचे अचानक ही महाद्वीप का आरम्भ नहीं हो जाता है। वहाँ महासागरीय तल एवं महाद्वीप के मध्य एक विस्तृत, कम गहरा जलमग्न स्थल मिलता है। इस कम गहरे जल मग्न स्थल भाग को ही महाद्वीपीय मग्नतट कहते हैं।
ट्विार्था के अनुसार, “महाद्वीपों में समुद्र की ओर के अपतटीय भाग जो सागर जल में डूबे हुए हैं, महाद्वीपीय
मग्नतट कहलाते हैं ।”
यहाँ औसत गहराई 100 फैदम और ढाल 1° से 3° तक पाया जाता है। मग्नतटों की चौड़ाई वहाँ के स्थलाकृतिक संरचना पर निर्भर करती है। जहां तट के पास पर्वत श्रेणी होती हैं, वहाँ मग्नतट संकरे पाए जाते हैं। जैसे एण्डीज पर्वतों के कारण दक्षिणी अमेरिका का पश्चिमी महाद्वीपीय मग्नतट काफी संकरा है।
चौड़े मग्नतट हिमनदीय तथा नदीय तटों के पास पाये जाते हैं । जैसे- उत्तरी साइबेरिया, पीला सागर, स्याम की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी के मग्नतट। किन्तु नदियों के मग्नतट हमेसा चौड़े नहीं होते है। जैसे – मिसीसिपी नदी के डेल्टा के निकट चौड़ा मग्न तट न होकर संकरा तट है।
महाद्वीपीय मग्नतट मुख्यतः कम गहरे होते हैं। इनकी गहराई लगभग 100 फैदम तक होती है । जहाँ सूर्य की किरणें सरलता से प्रवेश कर जाती है। सूर्य के प्रकाश और गर्मी के फलस्वरूप यहाँ जीवन संभव होता है। यह समुद्री वनस्पति तथा जीव पाए जाते है।
मग्नतटों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विद्वानों में काफी मतभेद है। कुछ विद्वानों का मत है कि मग्नतट की रचना समुद्रतल के ऊपर उठने अथवा भूमि के नीचे धसने से हुई है। कुछ विद्वानों मानते है कि इनका निर्माण लहरों के कटाव से हुआ है। कुछ विद्वानों के अनुसार मग्नतटों की उत्पत्ति हिमयुग में बर्फ की चादरों और हिम-नदियों के पीछे हटते रहने और समुद्र-तल में परिवर्तन होने के कारण हुई है।
महासागरों के कुल क्षेत्रफल के 7.6 प्रतिशत भाग पर महाद्वीपीय मग्नतट पाए जाते है। वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय मग्नतट का कुल क्षेत्रफल 30.6 मिलियन वर्ग किमी है।
महाद्वीपीय मग्नतट मानव के लिए आर्थिक महत्व रखते है। यहाँ समुद्रों का जल छिछला होता है। महाद्वीपों से अनेक प्रकार के पोषक तत्व नदियों द्वारा बहाकर यहाँ लाये जाते हैं। महाद्वीपीय मग्नतट के उथले जल में विभिन्न प्रकार के समुद्री जीव तथा मछलियां पायी जाती है।
2 महाद्वीपीय मग्न ढाल (Continetal Slope)
महाद्वीपीय मग्नतट के बाद महाद्वीपीय मग्न ढाल पाया जाता है। महाद्वीपीय मग्नतट और महासागर के बीच तेज ढालयुक्त भाग ही मग्नढाल कहलाता है। इस ढाल के कोण में स्थान स्थान पर भिन्नता पायी जाती है। कुछ स्थानों पर ढाल तीब्र तथा कही कही ढल मन्द भी पाया जाता है।
फ्रिन्च एवं ट्रिवार्था के अनुसार, मग्नतट का अपेक्षाकृत अधिक तीव्र ढालवाला भाग जो उसके किनारे से गहरे सागर तल तक फैला होता है, महाद्वीप का वास्तविक किनारा होता है।
महाद्वीपीय मग्न ढाल का औसत ढाल 5° तक होता हैं। मग्नढाल की औसत गहराई 100 से 1700 फैदम तक होती है। इनका विस्तार कुल सागरीय क्षेत्रफल के 8.59 भाग पर है। तरंगों तथा अन्य अपरदन की क्रिया से अप्रभावित होने के कारण मग्नढालों पर अवसाद के निक्षेप नहीं पाये जाते है। किन्तु सूक्ष्म कणों का जमाव अवश्य पाया जाता है।
मग्न ढाल की उत्पत्ति के बारे में भी विद्वानों का मत एक नही है। कुछ विद्वान मानते है कि इनकी उत्पत्ति तरंगों के अपरदन से हुई है। कुछ विद्वान इनकी उत्पत्ति विवर्तनिक क्रियाओं को मानते है। भ्रंशन क्रिया के कारण ढालों पर गहरी खाइयाँ तथा अन्त:सागरीय कन्दराएँ निर्मित हो जाती हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार, इनकी उत्पत्ति महाद्वीपीय मग्नतट के मुडने तथा उन पर अवसाद के जमाव से हुआ है।
3 गहरे सागरीय मैदान (Deep Sea Plains)
महाद्वीपीय मग्न ढाल जहाँ समाप्त होते है वही से गहरे समुद्री मैदानों का प्रारम्भ होता है। महासागरों के नितल का अधिकांश भाग इन्हीं मैदानों से निर्मित है। ये मैदान पूर्णतः समतल नहीं है इनमे छोटे छोटे पहाड़ीनुमा टीले पाए जाते है। इनकी गहराइयों में भी पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। इनकी औसत गहराई 2000-3000 फैदम तक होती है। नदियों का निक्षेप यहाँ तक नही पहुच पाता है।
एल्चेट्रास ने ध्वनिकरण यंत्र द्वारः यह पता लगाया कि गम्भीर सागरीय मैदान का उच्चावच समतल नही हैं, यहाँ समुद्री टीले, भ्रंश, पठार नुमा स्थलाकृतियां तथा कटक पाए जाते है जो द्वीपों का निर्माण करती हैं। जापान द्वीप इसी प्रकार की कटक के ऊँचे उठे हुए भाग हैं।
गम्भीर सागरीय मैदानों का तल कोमल शैलों द्वारा निर्मित है। इन मैदानों पर समुद्री जीव-जन्तुओं के अस्थिपंजर, वनस्पतियों, कीचड़, कई प्रकार के पंक तथा ज्वालामुखियों की राख आदि का जमाव पाया जाता है।
गहरे समुद्री मैदानों के ऊपर विभिन्न प्रकार की अन्त:समुद्री स्थलाकृतियों को खोज, की जा चुकी है। जैसे-महासागरीय कटक, चोटियां, गुयोट एवं विभिन्न प्रकार की खाइयाँ आदि पायी जाती है।
महासागरों में स्थित बहुत से द्वीप समुद्री ज्वालामुखी से निर्मित चोटियां हैं । अन्तरा:समुद्री श्रेणियों अथवा पर्वतों एवं पठारों के जल से बाहर निकले हुए भागों से भी द्वीपों की उत्पत्ति होती है। महासागरों के नितल पर अपरदन की क्रिया का नगण्य प्रभाव पड़ने से वहां की सभी स्थलाकृतियों में तीक्ष्णता पाई जाती है।
4 महासागरीय गर्त (Ocean Deeps)
महासागरों के नितल पर पाये जाने वाले अधिक गहरे खाइयों को ही महासागरीय गर्त कहते है। ये महासागर के लगभग 7% क्षेत्र पर पाए जाते हैं। ये यहाँ यत्र तत्र पाए जाते है जिनके किनारे तीब्र ढाल वाले होते हैं। ये गर्त सागरों के मध्य भाग में न मिलकर किनारे तट के समानांतर पाए जाते हैं। उदाहरणार्थ-प्रशान्त महासागर के दोनों किनारों पर ऐसे अनेक गर्त मिले हैं। इन गर्मों की गहराई 3000 – 5000 फैदम तक पाई जाती है। विश्व का सबसे गहरा गर्त फिलीपाइन्स द्वीप के निकट मेरियाना गर्त है।
5 महासागरीय खाइयाँ (Trenches)
महासागरीय खाइयाँ महासागर में काफी विस्तृत रूप में फैली हुई हैं। इन गहन सागरीय खाइयों का निर्माण विवर्तनिक क्रियाओं के द्वारा हुआ है। ये खाइयाँ द्वीपमालाओं के सहारे चौड़ाई में स्थित है। बड़ी ट्रेन्च कहीं-कहीं 200 किलोमीटर तक चौड़ी है। प्रशांत महासागर के पश्चिमी तट के पास सर्वाधिक ट्रेन्चें पाई जाती हैं। इनमें क्यूराहल, जापान, नानशेई शोटो, मरिआना, बुगाइन पिले, न्यूहेवाइस, टोंगा, करमाडेक, मध्य अमेरिका, पीरू, चिली प्रमुख हैं । हिन्द महासागर में जावा ट्रेन्च तथा एटलांटिक महासागर में प्यूटोरिको ट्रेच स्थित है।
अन्त:सागरीय ज्वालामुखी उद्गारों से निर्मित पर्वत शिखर जब लहरों की अपरदन क्रिया से अपरदित होते है तो उनकी आकृति पठार जैसी हो जाती है और बाद में वे जलमग्न हो जाती है, तब वे गुयॉट कहलाती है। इनके जलमग्न होने के दो कारण होते हैं-
(i) सागर तल का उठना,
(ii) ज्वालामुखी द्वीपों का धंसना
6 महासागरीय कटक (Oceanic Ridges)
महासागरीय कटक महासागरों में निर्मित एक विशालकाय रचना है। इनकी लम्बाई रॉकी, एण्डीज, आल्पस व हिमालय पर्वतमालाओं के क्रम से भी अधिक है। ये सागर तल के नीचे 5000 या 6000 फीट की गहराई में पायी जाती है। इनकी औसत ऊँचाई 10,000 से 12,000 फीट है।
एटलांटिक महासागर में यह कटक अजोर्स तथा एसेन्शियन द्वीपों के रूप में पायी जाती है। महासागरीय कटके सभी महासागरों में मिलती है। 1970 के बाद सर्वेक्षणों से यह पता चला कि एटलांटिक कटक उस वृहत् कटक समूह क्रम का एक भाग जो भूमण्डल के सभी महासागरों में फैला है। यह कटक समूह एक भ्रंश का भाग है जिसके द्वारा महाद्वीपों का विस्थापन हुआ हैं।
उत्तरी अटलांटिक में डॉलफिन कटक और दक्षिणी अटलांटिक में चैलेन्जर कटक स्थित है । प्रशान्त महासागर में जलमग्न कटक के स्थान पर छोटे पठार के रूप में कुछ उभार स्थित है। पूर्वी प्रशान्त महासागरीय कटक 400 मीटर की गहराई पर स्थित है। हवाई तथा होनोलुलु द्वीप इस कटक के ही शिखर हैं। हिन्द महासागर में उत्तर से दक्षिण तक जलमग्न कटक विस्तृत है जो महासागर को दो भागों में बाँटता है । यह अधिक चौड़ा व कम ऊँचा कटक है । अण्डमान निकोबार द्वीप, चैगोस, न्यू एम्सटरडम सेन्ट पॉल आदि द्वीप जलमान कटक के ही शिखर हैं।
7 अन्तःसागरीय गम्भीर खड्ड (Submarine Canyons)
स्थलभाग की तरह ही महाद्वीपीय मग्नतट तथा मग्न हाल पर खड़ी दीवारयुक्ता गहरी व संकरी घाटियाँ पाई जाती है । ये प्रायः नदियों के मुहाने पर स्थित होती है । शेपर्ड के अनुसार, ये खड्ड स्थल पर नदी द्वारा निर्मित युवावस्था की घाटियों के समान होती है। किन्तु ये स्थलीय गंभीर खड्डों से अधिक गहरी होती है । इनका औसत ढाल 1.7% होता है।
नदियों के मुहानों के समीप या सामने स्थित गम्भौर खड्ड अधिक लम्बे किन्तु कम ढालयुक्त होते हैं । द्वीपों के निकट स्थित कैनियन गहरी च अधिक हाल (13.8%) युक्त होती है । इनकी गहराई सामान्यतः 2000 से 3000 फीट होती है। किन्तु कहीं-कहीं ये 10,000 फीट तक गहरी हैं । इनकी तली में रेत, सिल्ट, चीका, बजरी आदि पदार्थों के निक्षेप पाये जाते हैं, किन्तु पावों पर निक्षेप नहीं पाये जाते।
शेपर्ड व बीयर्ड नामक भूगोलवेत्ताओं ने विश्व में 102 कैनियन का अन्वेषण किया है। अटलांटिक महासागर के पश्चिमी तट पर संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर मिसीसिपी कैनियन व कनाडा से हैटरस अन्तरीप तक कई सैनियन स्थित है जिनमें हडसन व चेसापीक कैनियन मुख्य है।
प्रशान्त महासागर के अधिकांश खड्ड कैलिफोर्निया की खाड़ी में स्थित है। इनमें मॉन्टेरी खाड़ी में स्थित मोन्टेरी कैनियन सबसे महत्वपूर्ण है। हिन्द महासागर में अन्त:सागरीय खड्डों की संख्या कम है। गंगा व सिन्धु के समीप मुहानों के निकट कई महत्त्वपूर्ण किन्तु कम ढालू खड्ड स्थित हैं । श्रीलंका के उत्तर में तथा अफ्रीका तट पर जंजीबार के दक्षिण में कुछ महत्त्वपूर्ण खड्ड स्थित है।
8 गुयॉट या निमग्न द्वीप (Guyot)
महासागरों में गुयॉट महासागरीय पर्वत शिखरों की भाँति है। महासागरीय पर्वत शिखर कोणयुक्त होते हैं, जबकि गुयॉट का शिखर सपाट होता है। वैसे दोनों की ही उत्पत्ति अन्त:सागरीय ज्वालामुखी उद्गार से होती है। प्रशान्त महासागर में 10,000 गुयॉट पाए जाते है, जिनमें कई 3000 मीटर तक ऊँचे हैं। एटलांटिक महासागर में भी कुछ निमग्न द्वीप पाये जाते हैं । हैस ने इन द्वीपों के खोजकर्ता अर्नोल्ड गुयॉट के नाम पर इन द्वीपों का नामकरण किया है।