महासागरीय निक्षेप – Ocean Deposits

महासागरीय निक्षेप – Ocean Deposits :- विभिन्न कारकों के द्वारा महासागरों के तल में एकत्रित होनेवाले सभी पदार्थ महासागरीय निक्षेप कहलाते हैं। निक्षेप के मुख्य कारक नदियां, पवन, हिमानियां, सागरीय लहरे एवं ज्वालामुखी क्रिया हैं। निक्षेपित सभी पदार्थ धीरे-धीरे सागरों एवं महासागरों की तली पर जमा होकर कठोर शैल में परिवर्तित हो जाते है।

समुद्रों की तली में जैविक और अजैविक स्रोतों से जमा हुए अवसादों की सैकड़ों मीटर मोटी परत पायी जाती है। इन निक्षेपों का बहुत बड़ा भाग स्थलखण्डों से प्राप्त होता है। नदियाँ, हिमानी तथा लहरें स्थल से प्राप्त होनेवाले अवसादों को समुद्र तल लाने का कार्य करती हैं। परन्तु इसमे सबसे अधिक योगदान नदियों का होता है।

सागरीय निक्षेपों के स्रोत तथा उनके द्वारा जमा किया जाने वाला अवसाद निम्न प्रकार है :-

महासागरीय निक्षेप (Ocean Deposits) के स्रोत :-

1. नदी द्वारा परिवहित पदार्थ
2. चूनायुक्त पदार्थ
3. सिलिकायुक्त पदार्थ

महासागरों के तल पर जमा होने वाले समस्त पदार्थ महासागरीय निक्षेप कहलाते हैं। ये निक्षेप नदियों, पवनों, हिमानियों, सागरीय लहरों एवं ज्वालामुखी द्वारा निक्षेपित किए जाते हैं। महासागरीय निक्षेप मुख्यत तरल पंक के रूप में पाया जाता है. जिसे ऊज (Ooze) कहा जाता है।

चूना प्रधान निक्षेप में चूने की अधिकता पायी जाती है। इसकी रचना में फोरामिनिफेरा की अधिकता होती है। जबकि सिलिका प्रधान निक्षेपों में सिलिका की अधिकता होती है। ग्लोबिजेरिना तथा टैरोपोड पंक चूना प्रधान हैं तथा डायटम एवं रेडियोलेरिया पंक सिलिका प्रधान हैं।

अकार्बनिक निक्षेप वे हैं जो ज्वालामुखी पदार्थों व उल्का धूल के अवशेष द्वारा निक्षेपित किए जाते हैं।

महासागरीय निक्षेपों (Ocean Deposits) का वर्गीकरण :-

इनका वर्गीकरण दो प्रकार से किया गया है-

महासागरीय निक्षेप

(1) भूमिज या स्थलजात निक्षेप

ये निक्षेप मुख्यतः महाद्वीपीय मग्नतटों तथा मग्नढालों पर पाये जाते है। यहां स्थलीय भागों की अधिकता पाई जाती है। ये पदार्थ स्थलीय कारकों जैसे नदियों, पवनें, ग्लेशियर आदि द्वारा एकत्र किए जाते हैं। जिनमें सर्वाधिक योग नदियों का ही है। अपरदन के विभिन्न कारक इन पदार्थों का परिवहन करके महासागरों में जमा करते हैं। इस क्रिया में बड़े आकार के जमाव पहले, बाद में छोटे पदार्थ जमा किए जाते हैं। जो क्रमशः बजरी, रेत, सिल्ट, मृत्तिका तथा कीचड़ है। सागरों में एकत्र होने वाले पदार्थ को पंक कहा जाता है। इन्हें रंग के आधार पर तीन वर्गो में विभाजित किया जा सकता है-

(i) नीला पंक
(ii) हरा पंक
(iii) लाल पंक

(i) नीला पंक-

इस पंक का निर्माण लोहे के ऑक्साइड तथा जैविक चट्टानों के विघटन से होता है। यह पंक नीले रंग का होता है। इसमें चूने की मात्रा लगभग 35% होती है। यह पंक महाद्वीपों के किनारे महाद्वीपीय मग्नतटों पर सभी सागरों एवं महासागरों में पाया जाता है। इसका निक्षेपण आर्कटिक महासागर, अटलाण्टिक महासागर तथा भूमध्यसागर में अधिक मिलता है।

(ii) हरा पंक-

इस पंक में चूना तथा सिलिकेट का अंश अधिक रहता है। इसमें पोटैशियम 70% तथा सिलिकेट 50% पाया जाता है। समुद्रि जल में रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप इसके रंग में परिवर्तन हो जाता है। इनका जमाव सामान्यत वही होता है जहां नदियों का जल नहीं पहुँच पाता है। यह उत्तरी अमरीका के अटलाण्टिक तट, जापान, आस्ट्रेलिया तथा अफ्रीका के उत्तमाशा अन्तरीप के पास अधिक पाया जाता है।

(iii) लाल पंक-

इस प्रकार के पंक का निर्माण लौह ऑक्साइड युक्त चट्टानों के विघटन से होता है। इसमें लौह ऑक्साइड 32% तक पाया जाता है। लोहे के अंश के कारण ही यह लाल रंग का होता है। इसका निक्षेप ब्राजील तट, पीला सागर तथा अटलाण्टिक महासागर निकट पाया जाता है।

इसके अलावा महासागरों में ज्वालामुखी पंक तथा प्रवाल पंक भी पाए जाते हैं। ज्वालामुखी क्रिया के द्वारा राख, मैग्मा तथा लावा का निक्षेप होता है। इसी तरह प्रवाल जीवों के खोल के एकत्र होने से भी पंक का जमाव होता है।

(2) गम्भीर सागरीय निक्षेप

ऐसे निक्षेप सामान्यतया गम्भीर सागरीय मैंदान तथा खाइयों में पाए जाते हैं। इस नीक्षेप में समुद्री जीव-जन्तु, वनस्पति, ज्वालामुखी राख तथा अन्य तत्व मिले रहते हैं। गम्भीर सागरीय निक्षेप मुख्यतः तरल पंक के रूप में पाया जाता है। जिसे ‘ऊज’ (Ooze) कहते हैं। यह विभिन्न जीवों के मृत शरीर, उनके खोलों आदि से बनते हैं।
इस निक्षेप को दो भागों में बाँटा जा सकता है:-

(1) कार्बनिक निक्षेप-

कार्बनिक निक्षेप महासागरों में पाए जाने वाले विभिन्न जीव के अवशेष होते हैं। इन जीवों के मरने के बाद उनकी खोल तथा हड्डियां आदि तली में एकत्र हो जाती हैं। इन निक्षेपों में दो प्रकार के निक्षेप पाए जाते हैं :-

(A) चूना प्रधान-

इस निक्षेप में चूने की मात्रा अधिक पाई जाती है। इसकी रचना में फोरामिनिफेरा नामक जीव के अवशेष की अधिकता होती है। चूने की अधिकता होने से ये निक्षेप या पंक अधिक गहराई में नहीं पाए जाते हैं क्योंकि ये जल में शीघ्र ही धुल जाते हैं।

इसे निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :-

(i) ग्लोविजेरिना पंक- ये पंक फोरामिनिफेरा जाति के ग्लोविजेरिना नामक जीव के अवशेष से बनता है। ग्लोबिजेरिना के अतिरिक्त अन्य जीव के अवशेष भी इसमें शामिल रहते है। किंतु ग्लोबिजेरिना की प्रधानता रहती है। ग्लोबिजेरिना का आकार बहुत सूक्ष्म पिन की नोंक के समान होता है। यह सफेद रंग का होता है। तट के समीप इसका रंग नीला या स्लेटी भी होता है। इस पंक को सुखाने पर इसका रंग भूरा मटमैला हो जाता है। इसमें चूने का अंश 64.47% होता है।

सामान्यतया ग्लोबिजेरिना जीव 1500 से 2000 फैदम (1 फैदम = 6 फीट) की गहराई पर पाए जाते हैं। साथ ही स्थलीय निक्षेपों की कमी वाले कम गहरे सागरों में भी पाए जाते हैं। इस पंक का विस्तार अटलाण्टिक महासागर के उष्ण एवं शीतोष्ण भागों में, हिन्द महासागर के पूर्वी एवं पश्चिमी मग्नतटों पर तथा पूर्वी प्रशान्त महासागर तट पर अधिकता से पाया जाता है।

(ii) टैरोपोड पंक- इस पंक के निर्माण में टैरोपोड नामक जीव की अधिकता रहती है। टैरोपोड प्लैंकटन नामक समुद्री वनस्पति के साथ पाए जाते हैं। यह अत्यधिक कोमल, पतले तथा नुकीले शरीर वाला जीव होता है। जो कम गहरे जल में मिलता है किन्तु महाद्वीपों से दूर सागरीय पठारों एवं कटकों पर भी उत्पन्न होता है। इनमें चुने की मात्रा 80% तक होती है। यह अधिकतर उष्ण कटिबन्धीय भागों में 800 से 1500 फैदम की गहराई पर पाया जाता है। इससे अधिक गहराई पर यह पंक नहीं मिलता है। इसका अधिकतर जमाव पूर्वी तथा पश्चिमी प्रशान्त महासागर, कनारी द्वीप के निकट, भूमध्यसागर तथा अटलाण्टिक महासागर में कटकों के समीप पाया जाता है।

(B) सिलिका प्रधान निक्षेप-

इस प्रकार के निक्षेप में सिलिका की अधिकता पाई जाती है। चूना प्रधान निक्षेप की तुलना में यह अधिक गहरे तथा ठण्डे भागों में पाया जाता है क्योंकि ये शीघ्रता से घुलता नहीं है।
इसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) डायटम पंक – ये पंक मुख्यतः डायटम नामक जीव के द्वारा निर्मित होता है। इसमें सिलिका की मात्रा 30% तक होती है। इसका कोश सिलिका का बना होता है। ये सूर्य के प्रकाश में नष्ट हो जाते है अतः इनका जमाव ठण्डे तथा गहरे भागों में मिलता है। तट के समीप यह पंक लाल रंग का होता है किन्तु तटीय भागों से दूर पीले, स्लेटी तथा मटमैले रंग के दिखाई पड़ते हैं। इसका सर्वाधिक जमाव प्रशान्त महासागर में अलास्का से जापान तक तथा अटलाण्टिक महासागर में उच्च अक्षांशों में पाया जाता है।

(ii) रेडियोलेरिया पंक- यह गम्भीर सागरीय भागों में अधिकता से पाया जाता है। इसका निर्माण फोरामिनिफेरा नामक सूक्ष्म जीव के कोशों द्वारा होता है। इसमें कैल्शियम कार्बोनेट का अंश कम पाया जाता है। गहराई बढ़ने के साथ चूने की मात्रा और कम होती जाती है। रेडियोलेरिया पंक सामान्यतया 2000 से 5000 फैदम की गहराई पर पाया जाता है। यह पंक प्रशान्त महासागर में संयुक्त राज्य अमरीका के पश्चिमी तट से पश्चिम की ओर अधिक पाया जाता है।

(2) अकार्बनिक निक्षेप-

यह निक्षेप मुख्यतः ज्वालामुखी पदार्थों तथा उल्का धूल के अवशेष के रूप में जमा होता हैं। इनमें डोलोमाइट, सिलिका, लोहा, मैंगनीज ऑक्साइड, फॉस्फेट आदि के कण मिलते हैं। इनके अतिरिक्त फॉस्फोराइट, फेल्सपार, फिलिपसाइट आदि पदार्थ भी मिलते है।
इन्हें निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

(i) लाल मृत्तिका
(ii) उल्का धूल

(i) लाल मृत्तिका- यह मुख्य रूप से लौह ऑक्साइड तथा एल्यूमिनियम के कण से बना होता है, इसलिए यह लाल रंग का होता है। इसका निर्माण ज्वालामुखी पदार्थ के विघटन से होती है। यह पदार्थ नदियों अथवा पवन द्वारा बहाकर सागरों में इकट्ठा किया जाता है। इस मिट्टी का स्वरूप कोमल, चिकना तथा लचीला होता है। महासागरों के वे क्षेत्र जो ज्वालामुखी क्षेत्रों से दूर हैं उनमें इस निक्षेप की मात्रा बहुत कम पाई जाती है। अगाध सागरों में जीवों के अवशेष अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इसका सर्वाधिक जमाव प्रशान्त महासागर में पाया जाता है।

(ii) उल्का धूल- अन्तरिक्ष में उड़ती हुई धूल, स्थल तथा जल दोनों पर पड़ती है, किन्तु सागरों पर इसका अधिक जमाव दिखाई देता है। इस धूल में लोहे के कण अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। जब इसका सम्मिश्रण लाल चीका से हो जाता है तो पहचानना अत्यधिक कठिन होता है। उल्का धूल का जमाव कम महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका जमाव अत्यधिक धीमी गति से होता है।

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