महासागरीय जल का तापमान : Ocean water temperature :- धरातल पर ताप का प्रमुख स्रोत सूर्य है। इसी के कारण जल तथा स्थल भाग गर्म होता है। स्थल के समान ही जल भाग भी सूर्य के ताप से ही गर्म होता है। सूर्य के ताप के कारण ही महासागर के जल का तापमान और घनत्व प्रभावित होता है। महासागरों के जल का तापमान सभी जगह एक समान नहीं होता है। इसमें स्थान और समय के सापेक्ष अंतर पाया जाता है। गहराई और अक्षांशों की भिन्नता से भी तापमान में पर्याप्त अंतर आ जाता है। खुले सागरों और स्थल से घिरे सागरों के जल के तापमान में भी अंतर पाया जाता है।
महासागरीय जल का तापमान : Ocean water temperature
महासागरों के जल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारण निम्नलिखित हैं-
(1) अक्षांश
(2) प्रचलित पवनें
(3) धाराएँ
(4) स्थल खण्डों की स्थिति
(5) सामुद्रिक गहराई
(6) हिमक्षेत्र
भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर महासागरों के जल का तापमान घटता जाता है। तापमान गिरने का यह क्रम भूमध्य रेखा से दूर स्थित अक्षांश के साथ बढ़ता जाता है महासागरों की सतह का अधिकतम तापमान उत्तरी गोलाई में 5° अक्षांश पर तथा न्यूनतम तापमान 80° उत्तरी अक्षांश पर पाया जाता है।
सतह से गहराई पर जाने पर जल के तापमान में परिवर्तन आ जाता है। भूमध्य रेखा के समीप सतह का तापमान 27°C रहता है, परन्तु 2000 मीटर की गहराई पर 4.4°C हो जाता है। 3650 मीटर की गहराई पर जल का तापमान घट कर 1.6°C हो जाता है।
महासागरीय जल का तापमान का वितरण : Distribution of Temperature
महासागरीय जल का तापमान को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
महासागरीय तापमान का क्षैतिज वितरण : Horizontal Distribution of Temperature
महासागरीय जल के तापमान का क्षैतिज वितरण अक्षांशों की स्थिति पर निर्भर करता है। तापमान का क्षैतिज वितरण पर विषुवत रेखा से दूरी बढ़ने से अधिक प्रभावित होता है। विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर तापमान घटता जाता है। तापमान कम होने का यह क्रम प्रत्येक अक्षांश पर 1°C होता है। दोनो गोलार्धों में निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की तरफ जाने पर तापमान कम होता जाता है। किन्तु तापमान का यह अंतर दक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्द्ध में अधिक पाया जाता है।
सतह के तापमान के अंतर को समताप रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है। समताप रेखाओं के स्थिति पर भौतिक कारणों का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है साथ ही पवनों की दिशा, समुद्री धाराओं के मार्ग, सागर का खुला या बन्द होना आदि का प्रभाव भी पड़ता है। हिन्द महासागर में 15°C की समताप रेखा अधिकतम ताप के स्थानों से होकर गुजरती है। अरब सागर में समताप रेखाएँ उत्तर की ओर तथा भारतीय प्रायद्वीप के सहारे दक्षिण को मुड़ती है। हिन्द महासागर में अधिकतम तापमान अरब सागर के दक्षिणी भाग में अंकित किया जाता है।
सभी महासागर में गर्म व ठण्डी धाराओं का प्रभाव समताप रेखाओं के स्थिति पर पड़ता है। उत्तरी अटलांटिक महासागर के पश्चिमी भाग में समताप रेखाएँ एक दूसरे के निकट स्थित होती हैं, क्योंकि दक्षिण-पश्चिम से गल्फ स्ट्रीम की गर्म धारा तथा उत्तर-पश्चिम से लैब्राडोर की ठण्डी धारा मिलती है। अटलांटिक महासागर में गर्म धाराओं के मिलने के कारण तापमान अधिक पाया जाता है। फिर भी अन्य महासागरों की अपेक्षा प्रशान्त महासागर के जल का तापमान अधिक रहता है।
प्रशान्त महासागर के जल के सतह का तापमान 19.1°C रहता है। हिन्द महासागर और अटलाण्टिक महासागर का तापक्रम क्रमशः 17.3°c और 16.91°C रहता है। हिन्द महासागर की सतह का तापमान बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का उच्चतम तापक्रम 25°C पाया जाता है। किन्तु हिन्द महासागर के सीमान्त सागरों का तापक्रम और भी अधिक पाया जाता है। उदाहरण के लिए लाल सागर तथा फारस की खाड़ी का उच्चतम तापक्रम क्रमश 32.3° से. तथा 34° से. अंकित किया जाता है।
चारों ओर से घिरे सागरों का उच्चतम तापक्रम ( जैसे कैस्पियन सागर तथा काला सागर का तापमान इन सागरों के तापक्रम से कम पाया जाता है। महासागरों के तापमान के क्षैतिज वितरण पर सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है जिस समय सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में होता है उस समय उत्तरी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ अधिक तापमान वाली तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में कम ताप वाली समताप रेखाएं होती हैं। सूर्य की दक्षिणायण स्थिति होने पर इससे विपरीत स्थिति बनती हैं।
महासागरीय जल का तापमान का लम्बवत् वितरण : Vertical Distribution of Temperature
गहराई बढ़ने से महासागरों के तापमान में कमी आ जाती है क्योंकि ताप का स्रोत सूर्य ही है। महासागरों में सूर्य की
किरणें 183 मीटर की गहराई तक ही प्रवेश कर पाती हैं। अतः इस गहराई तक तापमान में काफी परिवर्तन होता रहता है। भूमध्य रेखा पर समुद्र की सतह का तापमान 27°C रहता है। परन्तु 1,097 मीटर की गहराई पर 4.4°C तथा 1,829 मीटर की गहराई पर 3.3℃ और 3,658 मीटर की गहराई पर 1.6℃ हो जाता है। महासागरीय जल के तापमान के लम्बवत् वितरण का संक्षिप्त वितरण इस प्रकार है-
(i) महासागरों के जल में गहराई के साथ तापमान में परिवर्तन एक समान नहीं होता है।
(ii) गहराई में ताप का गिरना उष्ण कटिबन्धों तथा ध्रुवों पर अलग अलग दर से होता है। उष्ण कटिबन्धों में सतह पर तापक्रम अधिक होता है। इसलिए ताप के गिरने की दर भी अधिक है, जबकि ध्रुवों के निकट ताप के गिरने की दर कम है, किन्तु अत्यधिक गहराई पर ताप दोनों ही क्षेत्रों में एक समान होता है।
(iii) विषुवत रेखीय प्रदेश में अधिक वर्षा होने के कारण सतह का जल कम गर्म होता है। यहां कुछ गहराई तक तापमान बढ़ता है फिर तेजी से गिरावट आती है।
(iv) कुछ विशिष्ट सागरों जैसे- सारगैसो सागर, लाल सागर तथा भूमध्यसागर आदि में गहराई पर भी ताप अधिक मिलता है। सारगैसो सागर में वामावर्त धाराओं के कारण निकटवर्ती सागरों का ठण्डा जल मिलने नहीं पाता है इसलिए तापमान हमेसा अधिक रहता है।
(v) उच्च अक्षांशों में स्थल से घिरे सागरों में तापमान हास् की प्रवृत्ति मिलता है। स्वच्छ जल की प्राप्ति के कारण सतह पर तापक्रम कम होता है। सतह के नीचे अधिक घनत्व एवं अधिक ताप वाला जल होता है। इससे अधिक गहराई पर फिर तापमान और कम हो जाता है।