छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति : Geography of Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ का भौगोलिक स्थिति
Share

छत्तीसगढ़ राज्य प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पूर्वी भाग में अवस्थित है। छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति 17°46′ उत्तरी अक्षांश रेखा से 24°5′ उत्तरी अक्षांश रेखा तक तथा 80°15′ पूर्वी देशान्तर रेखा से 80°20′ पूर्वी देशांतर रेखाओं के मध्य है। इस राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 1,35,191 वर्ग किलोमीटर है जो भारत के क्षेत्रफल का 4.11 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह देश का 10 वाँ बड़ा राज्य है।

विषय-सूची छुपाएं

राज्य का क्षेत्रफल पंजाब, हरियाणा तथा केरल तीनों राज्यों के क्षेत्रफल के योग से अधिक है। छत्तीसगढ़ राज्य का बस्तर संभाग (39114 वर्ग किमी) क्षेत्रफल में केरल राज्य से भी बड़ा है। छत्तीसगढ़ राज्य की उत्तर-दक्षिण लम्बाई 360 किमी तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ाई 140 किमी है। इसकी भौगोलिक सीमाएं देश के 6 राज्यों की सीमाओं को स्पर्श करती है। इस राज्य के उत्तरी भाग में उत्तर प्रदेश एवं झारखंड, पूर्व में उड़ीसा, दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम में मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्य स्थित हैं। कर्क रेखा राज्य के उत्तरी भाग से होकर गुजरती है। समुद्र को निकट होने के कारण समुद्री जलवायु का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है।

छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति – Chhattisgarh ki bhaugolik sthiti

छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति

छत्तीसगढ़ की सीमाएँ मध्य प्रदेश के 5 जिलों सीधी, मण्डला, बालाघाट, शहडोल एवं डिंडौरी को स्पर्श करती है।छत्तीसगढ़ राज्य की भौगोलिक आकृति समुद्री घोड़े (Sea Horse) के समान है। हरियाणा, मध्य प्रदेश एवं झारखंड के समान छत्तीसगढ़ भी स्थल से घिरा हुआ राज्य है। छत्तीसगढ़ की सीमा समुद्र को स्पर्श नहीं करती है। बंगाल की खाड़ी से यह 400 किमी दूर स्थित है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई 600 मीटर है। इस राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल अविभाजित मध्य प्रदेश के सम्पूर्ण क्षेत्रफल का 30.48 प्रतिशत है।

छत्तीसगढ़ का भौतिक स्वरूप

छत्तीसगढ़ राज्य भारत के मध्यवर्ती पठार के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित है। भौतिक विभेद के आधार पर इसे निम्नलिखित चार भौतिक विभागों में विभाजित किया जा सकता है

1. पहाड़ी प्रदेश

 2. पठारी प्रदेश

3. पाट प्रदेश

4. मैदानी प्रदेश।

पहाड़ी प्रदेश

इस राज्य के चारों तरफ से घने वन तथा पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसकी सामान्य ऊंचाई 1000 से 3000 मीटर तक है। इस क्षेत्र में मैदानी क्षेत्र की अपेक्षा जनसंख्या का निवास बहुत कम है। भूगर्भिक संरचना में भिन्नता और नदियों के अपरदन क्रिया के फलस्वरूप उच्च भूमि अनेक श्रेणियों में विभक्त है। इसे चार भागों में बाटा जा सकता है

(i) मैकाल श्रेणी

यह श्रेणी छत्तीसगढ़ मैदान के पश्चिम एवं उत्तरी-पश्चिमी भाग में एक दीवार की तरह स्थित है। इसकी ऊंचाई मैदानी भाग से पश्चिम की ओर क्रमशः बढ़ती गई है। मैकाल श्रेणी बिलासपुर एवं राजनांदगांव जिले की सिमा तक विस्तृत है। यह नर्मदा और महानदी जैसी विशाल प्रवाह प्रणाली को विभाजित करती है। यह श्रेणी समुद्र तल से 450-1000 मीटर की ऊँचाई तक है। इसके मध्य कई ऊँचे-ऊंचे कगार हैं, जिसमें चिल्पी घाट, बृजपानी घाट आदि प्रमुख हैं।

(i) छुरी उदयपुर की पहाड़ियाँ

ये पहाड़ियाँ यहाँ की नदियों द्वारा अत्यधिक विच्छेदित हैं और मांड नदी द्वारा एक दूसरे से अलग होती हैं। इन पहाड़ियों की ऊँचाई 600 से 1000 मीटर के मध्य है। छुरी की पहाड़ियाँ बिलासपुर जिले में हसदो नदी के पूर्वी भाग में स्थित है। उदयपुर की पहाड़ियाँ छुरी की पहाड़ियों के पूर्व में स्थिती है।

(iii) चांगभखार देवगढ़ पहाड़ियाँ

इनका विस्तार राज्य के उत्तरी भाग में है। इसमे जनकपुर, बैकुण्ठपुर, मनेन्द्रगढ़, सूरजपुर, अम्बिकापुर, कुसमी एवं रामानुजगंज, तहसीलें आती है। समुद्र तल से औसत ऊँचाई 600 से 1000 मीटर पायी जाती है। इस पहाड़ी की सबसे ऊँची चोटी देवगढ़ है, जो1027 मीटर ऊंची है। ये बलुआ पत्थर से निर्मित हैं।

(iv) अबुझमाड़ की पहाड़ियाँ

यह पहाड़ी दण्डकारण्य के पश्चिमी भाग में विस्तृत है जो नारायणपुर तहसील के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में है तथा अन्य क्षेत्र में बीजापुर तहसील में स्थित है।

पठारी प्रदेश-

छत्तीसगढ़ राज्य पठारी भू भाग से भरा पड़ा है। इसके पठारी प्रदेश को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) पेण्ड्रा लोरमी पठार-

पेण्ड्रा का पठार छत्तीसगढ़ के मैदान की उत्तरी-पश्चिमी भाग में स्थित है। लोरमी का पठार मुंगेली तहसील की उत्तरी पश्चिमी भाग में अवस्थित है। लोरमी पठार की औसत ऊँचाई 700 से 900 मीटर के मध्य है। इसका अधिकतम भाग घने वनों से घिरा हुआ है। इस पठार के किनारे मैंदान और बेसीन की ओर खड़े ढाल हैं। जिसमे पेण्ड्रा, कटघोरा, लोरमी एवं पण्डरिया तहसील अवस्थित हैं।

(ii) धमतरी महासमुन्द उच्च भूमि-

यह उच्च भू भाग सीमान्त क्षेत्र में स्थित है। जो धमतरी, कुरूद, राजिम, महासमंद, गरियाबंद, सरायपाली, एवं देवगढ़ तहसीलों में विस्तृत है। इस क्षेत्र की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 500 से 1000 मीटर है।

(iii) बस्तर का पठार-

यह छत्तीसगढ़ राज्य का एक विशिष्ट भू क्षेत्र है। जो दण्डकारण्य का पठार के नाम से भी जाना जाता हैं। इसकी समुद्र तल से औसत ऊँचाई 500 मीटर एंव अधिकतम ऊँचाई 762.5 मीटर है। यह उत्तरी भाग में छत्तीसगढ़ मैदान तथा दक्षिण में बीजापुर पठारी भू भाग से घिरा है। इस क्षेत्र के पूर्व में जगदलपुर पठार भूमि है।

(iv) दुर्ग उच्च भूमि-

यह क्षेत्र पश्चिम में रायपुर उच्च प्रदेश के समानान्तर फैला हुआ है। इस उच्च भूमि की सबसे महत्वपूर्ण धरातलीय विशेषता इल्ली राजहरा की पहाड़ियाँ हैं । ये दुर्ग जिले के दक्षिणी भाग में 700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस भाग में लौह- अयस्क युक्त चट्टान पाए जाते है। यह भाग घने वनों से घिरा है। इस भाग में मैदानों की तुलना में जनसंख्या बहुत कम है।

पाट प्रदेश

यह भूमि भी पठारी क्षेत्र है परन्तु इसका धरातलीय भाग सीढ़ीनुमा है। पाट प्रदेश पुरानी सम्प्राय भूमि का ही हिस्सा है जो उत्थान के कारण ऊंचे हो गए हैं। इस प्रदेश को भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) मैनपाट-

यह प्रदेश सरगुजा जिले के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक समतल उच्च भू भाग है। इस भाग की मुख्य श्रेणी 24 किमी लम्बी तथा 12 किमी चौड़ी हैं। यह प्रदेश उत्तर-मध्य में दक्षिणी अम्बिकापुर और सीतापुर तहसीलों तक फैला है। समुद्र तट से इसकी औसत ऊंचाई 1152 मीटर है। यहाँ लैटेराइट मिट्टियाँ के साथ कहीं-कहीं ट्रेप चट्टानें पायी जाती हैं। वर्तमान समय में कोरबा में स्थित एल्युमिनियम कारखाने को इसी प्रदेश से वॉक्साइट की आपूर्ति की जाती है। इस प्रदेश में तिब्बती शरणार्थियों को बसाया गया है।

(ii) जारंग पाट

यह भाग उत्तर पूर्व में सीतापुर एवं लुण्डा तहसीलों में फैला है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 1145 मीटर है। इसका विस्तार पंडरापाट तक है।

(ii) सामरी पाट

यह पाट प्रदेश पूर्वोत्तर भाग में सामरी तहसील तक विस्तृत है। इस भू भाग की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 700 से 1250 मीटर है। इस क्षेत्र का पूर्वी भाग अधिक ऊंचा है, जो जमीर पाट के नाम से भी जाना जाता हैं।

(iv) जशपुर पाट

यह प्रदेश छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे बड़ा पाट प्रदेश हैं। यह जशपुर जिले में स्थित है। इस भू भाग का क्षेत्रफल 4300 वर्ग किमी से अधिक है। इस क्षेत्र में ईब एवं मैमी नदियां बहती है । इस समतल पठारी एवं पाट को जशपुर पाट प्रदेश कहा जाता है।

मैदानी प्रदेश-

इस क्षेत्र की ऊंचाई समुद्र तल से 300 मी से कम है, जो एक समतल मैदानी प्रदेश के रूप में स्थित हैं। इसमें उच्चावच निम्न है। इस मैदानी प्रदेश को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) छत्तीसगढ़ का मैदान-

यह क्षेत्र भारत का धान का कटोरा कहलाता है। जो राज्य के मध्य भाग में स्थित है। यह क्षेत्र बघेलखण्ड पठार और सतपुड़ा के बीच मे स्थित है। यह प्रदेश राज्य के मध्य में लगभग 26680 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है। यह क्षेत्र एक संरचनात्मक एंव अपरदनात्मक मैदानी भू भाग है। इस मैदान को 2 उपप्रदेशों एवं 6 सूक्ष्म प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है।

(i) दुर्ग और रायपुर का मैदान-

यह भाग छत्तीसगढ़ मैदान के दक्षिणी क्षेत्र में अवस्थित है। जो शिवनाथ और महानदी अपवाह बेसिन के अन्तर्गत आता है। इस भू भाग का ढाल उत्तर की ओर है। इस मैदानी भाग में रायपुर, दुर्ग, भिलाई आदि महत्वपूर्ण औद्योगिक और व्यापारिक नगर बसें हुऐ हैं। भौगोलिक स्थिति के आधार पर इस मैदान को तीन उपविभागों में विभाजित किया गया है-

(क) ट्रांस महानदी मैदान-

यह मैदानी भाग महानदी के पश्चिम में स्थित है। इस क्षेत्र के अन्तर्गत राजिम, रायपुर का दक्षिणी भाग एवं धमतरी तहसील का उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र आता है।

(ख) महानदी-शिवनाथ दोआब-

यह दोआब छत्तीसगढ़ मैदान का मध्यवर्ती भू भाग है। जिसकी औसत ऊंचाई 250 मीटर है। इस क्षेत्र के मध्य से होकर खारुन नदी बहती है।

(ग) ट्रांस शिवनाथ मैदान-

यह मैदान एक समरूप भू भाग है जो समुद्रतल से औसतन 300 मीटर ऊँचा है। इस भू भाग का विस्तार शिवनाथ नदी के पश्चिम में पूर्वी राजनांदगाँव और पश्चिमी दुर्ग जिले में 4500 वर्ग किमी भू क्षेत्र में विस्तृत है।

(ii) बिलासपुर-रायगढ़ मैदान

यह भू भाग छत्तीसगढ़ मैदान के उत्तर में 11200 वर्ग किमी क्षेत्र में है। इसकी दक्षिणी सीमा शिवनाथ एवं महानदी बनाती है। इस क्षेत्र का उत्तरी भू भाग उच्च भूमि से घिरा है। इस क्षेत्र का औसत ऊँचाई 280 मीटर है। इसकी ऊंचाई दक्षिण की ओर कम होती गई है। इस मैदानी भू भाग का ढाल मंद और दक्षिण दिशा की ओर है। इस भू भाग से होकर अरपा, हसदो, केलो, आगर एवं मनियारी नदियाँ प्रवाहित होती हैं।

(iii) बस्तर का मैदान-

यह मैदान राज्य के दक्षिणी सीमांत प्रदेश में स्थित है। जो गोदावरी तथा उसकी सहायक नदियों के अवसाद से बना है। यह मैदान उत्तर की ओर दक्षिणी तथा उत्तर- पूर्वी पठार तक फैला है। यह भाग कोंटा तथा बीजापुर तक विस्तृत है। इस क्षेत्र की ऊंचाई 200 मीटर तथा चौड़ाई लगभग 25 किमी है। इस भू भाग का निर्माण ग्रेनाइट एवं नीस शैलों के अपरदन से हुआ है।


Share

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here