भूकम्प के प्रकार : Types of earthquakes in hindi:- भूकम्प एक आकस्मिक, घटना है जो धरातल के नीचे घटित होता है। विभिन्न प्रकार के भूकम्प (Types of earthquakes) के कारण सैकड़ों मकान धराशायी हो जाते है तथा अनगिनत व्यक्ति असमय ही कालकवलित हो जाते हैं। जब किसी बाह्य या अंतर्जात कारणों से पृथ्वी के भू-पटल में कम्पन्न उत्पन्न होता है, तो उसे भूकम्प कहा जाता है।
भूकम्प का अर्थ :-
भूकम्प’ शब्द का साधारण अर्थ है-पृथ्वी का हिलना, धरातल के अंदर होने वाली किसी हलचल के कारण जब धरातल का कोई भाग अचानक हिलने लगता है तो उसे भूकम्प कहते है। पृथ्वी में लगातार कम्पन होते ही रहते हैं। इन कम्पनों से हमारे दैनिक जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सामान्यतः पृथ्वी के उन झटकों को ही भूकम्प कहा जाता हैं जिनका मनुष्य अनुभव करते है और जिनके द्वारा जान-माल की क्षति होती है।
जे. बी. मेसलवेन की परिभाषा के अनुसार , “भूकम्प भूपटल का कम्पन अथवा लहर है जो धरातल के नीचे अथवा ऊपर चट्टानों के लचीलेपन या गुरुत्वाकर्षण की समस्थिति में क्षिणिक अव्यवस्था होने पर उत्पन्न होती है।
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में किसी उद्वेग के कारण केन्द्रीय बिन्दु से चारों ओर लहरें (तरंगें) उठ कर चारों दिशाओं में फैलती है। इस बिन्दु को भूकम्प उदगम केन्द्र या फोकस (Focus) कहा जाता है। इस केन्द्र के उपर धरातल पर स्थित वह बिन्दु जहाँ सबसे पहले भूकम्प का अनुभव होता है, अभिकेन्द्र (Epicentre) कहलाता है। भूकम्प आने के समय भूकम्प केन्द्र से विशेष प्रकार की तरंगें उठती हैं, जिन्हें भूकम्पी तरंगें या लहरें कहा जाता है। इन्हें भूकम्प लेखी (Scismograph ) पर रिकॉर्ड किया जाता है।
भूकम्प के प्रकार : Types of earthquakes in hindi
(i) सामान्य भूकंप: उत्पत्ति स्थान की गहराई 50 किलोमीटर तक।
(ii) माध्यमिक भूकंपः उत्पत्ति स्थान की गहराई 50 से 250 किमी.तक।
(iii) गहरा भूकंपः उत्पत्ति स्थान की गहराई 250 से 720 किमी. तक।
अधिकांश भूकंप सामान्य प्रकार के होते हैं जो 25 कि.मी. से कामगहराई में जन्म लेते है। विश्व में प्रतिवर्ष 8000 से भी अधिक भूकंप आते हैं।
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भूकम्प के प्रकार :- भूकम्प तीन प्रकार की होती हैं- Types of earthquakes in hindi
1. प्राथमिक अथवा प्रधान तरंगें (Primary Waves – P)
प्राथमिक तरंगें ध्वनि तरंगों (Sound Waves) के समान गति करती हैं। इस तरंग को अनुदैर्ध्य तरंगें (Longitudinal Waves) भी कहते हैं। ये तरंगें बाकी के तरंगों से तेज चलती हैं। इनकी तीव्रता इनके मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों की सघनता पर निर्भर करती है। प्राथमिक तरंगें पृथ्वी के सभी भागो जैसे क्रस्ट मेंटल कोर तीनों में गमन करती हैं। इनकी गति सबसे अधिक होने के कारण ये सबसे पहले धरातल पर प्रकट होती है।
2. द्वितीयक अथवा गौण तरंगें (Secondary Waves – S)
ये तरंगे प्रकाश तरंगों (Light Waves) की तरह गति करती हैं। इन्हें अनुप्रस्थ लहरें भी कहा जाता है। ये तरंगें प्राथमिक तरंगों के बाद महसूस होती हैं। इनकी गति भी प्राथमिक तरंग से कम होती है। ये द्रव से होकर नहीं गुजर पाती हैं। इसीलिए द्वितीयक तरंगें सागरीय भागों में पहुंचने पर समाप्त हो जाती है।
4. घरातलीय लहरें (surface waves – L)
ये वे लहरें हैं, जो पृथ्वी तल पर सबसे अधिक क्षति पहुंचती है। ये धरातल पर समुद्री लहरों के समान चलती हैं। इनकी गति कम होती है तथा गमन मार्ग सबसे अधिक होता है। ये लहरें समुद्री चट्टानों से गुजरने पर अधिक तीव्रगति से चलती हैं। सामान्य तौर पर इनकी गति 3 किलोमीटर प्रति सेकण्ड होती है। इन्हें अंग्रेजी के L’ अक्षर से जाना जाता है। वर्तमान समय में वैज्ञानिकों ने इन तीनों लहरों के अतिरिक्त कुछ भूकम्पी लहरों का पता लगाया है। जिन्हे Pg तथा Sg लहर कहा जाता है।
भूकंप का विश्व वितरण
(i) परि प्रशांत पेटी (Circum Pacific Belt)
यह विश्व की सबसे विस्तृत भूकंप पेटी है तथा समस्त विश्व के दो तिहाई भूकंप इसी पेटी में आते हैं। यह भूकंप कि पेटी यह पेटी, दो प्लेटों के अभिसरण सीमांत पर स्थित है। यह नवीन मोड़दार पर्वतों एवं ज्वालामुखियों का क्षेत्र है, जिसके कारण यहां भूकंप (Earthquake) अधिक आते हैं। यह भूकम्पीय पेटी एण्डीज, रॉकी और अलास्का होते हुए जापान, इण्डोनेशिया और न्यूजीलैण्ड तक चली जाती है।
(ii) मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid Continental Belt)
यह पेटी भूमध्य सागर से लेकर पूर्वी द्वीप समूह तक फैली हुई है। यह नवीन मोड़दार पर्वतों के क्षेत्र में स्थित है, जहां मुख्य रूप से संतुलन मूलक एवं भ्रंशमूलक भूकंप आते हैं।
भारत का भूकंप क्षेत्र इसी पेटी में सम्मिलित है। इस पेटी का बिस्तर पिरेनीज पर्वत से हिमालय तक है। इस भूकम्पीय पेटी की एक शाखा मध्य अटलांटिक तट पर फैली है। दूसरी शाखा जोर्डन घाटी होती हुई अफ्रीका की वृहद रिफ्ट घाटी तक है जिसकी एक शाखा मारीशस, सेचिलीस, वैगोरा द्वीपसमूह तथा डियागोगार्सिया आस्ट्रेलिया तक चली गई है, जिसे हिन्द महासागरीय भूकम्प पेटी कहा जाता है।
(iii) मध्य अटलांटिक पेटी।
यह पेटी मध्य अटलांटिक कटक के सहारे उत्तर में से लेकर दक्षिण तक फैली है। यहाँ पर भूकम्प (Earthquake) मुख्य रूप से प्लेटों के अपसरण (Divergence) के कारण रूपान्तर भ्रंश (Transform Fault) के निर्माण एवं दरारी ज्वालामुखी उद्गार के कारण आते हैं। यह मेखला उत्तर में स्पिट बर्जेन तथा आइसलैण्ड से प्रारम्भ होकर दक्षिण में बोवेट द्वीप के साथ विस्तृत है। इस पेटी के सर्वाधिक भूकम्प भूमध्य रेखा के पास आते हैं।
(iv) अन्य क्षेत्र: जैसे पूर्वी अफ्रीका का दरार घाटी क्षेत्र, जहां मुख्यत: भ्रंश मूलक भूकंप आते हैं।
नोट: भूकम्प के प्रकार :- यद्यपि अधिकांश ज्वालामुखी उद्गार (volcano) विभिन्न प्रकार के भूकंप (verious types of earthquakes) को जन्म देते हैं। इसके बावजूद यह कहना सही नहीं है कि विश्व के ज्वालामुखी क्षेत्र एवं भूकंप क्षेत्र एक ही हैं। हिमालय का भूकंप क्षेत्र ज्वालामुखी से रहित है।