छत्तीसगढ़ में मिट्टी के प्रकार : Types of soil in Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में मिट्टी के प्रकार : Chhattisgarh me mitti ke prakar

मिट्टियों की दृष्टि से छत्तीस़़गढ़ में बहुत भिन्नता पायी जाती है। छत्तीसगढ़ भारत के दक्षिणी पठार का भाग है जिसके कारण यहाँ अवशिष्ट मिट्टी प्रमुखता से मिलती है। यहाँ प्रौढ़ मिट्टी पाई जाती है। मिट्टी की भौतिक बनावट एवं मोटाई राज्य की कृषि एवं उसके प्रादेशिक वितरण को प्रभावित करते हैं। छत्तीसगढ़ में लाल और पीली मिट्टी की बाहुल्यता है, यद्यपि लैटेराइट, काली, बलुई और दोमट मिट्टी भी यहाँ पायी जाती है। भारतीय भूमि एवं मृदा सर्वेक्षण विभाग ने छत्तीसगढ़ की मिट्टी को 5 भागों में वर्गीकृत किया है। जो निम्न है : –

१ काली मिट्टी : Black soil (कन्हार मिटटी )

काली मिट्टी मुख्यतः बेसाल्ट जैसी आग्नेय चट्टान के अपघटन से निर्मित होती है। इस मिट्टी का रंग लोहे के ऑक्साइड के कारण काला होता है। इस मिट्टी में चूने और लोहे के तत्त्वों की अधिकता होती है। इस मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है जिसके कारण इस मिट्टी में सिंचाई की आवश्यकता बहुत कम रहती है। इसमे गेहूँ, कपास, चना, तिलहन सोयाबीन आदि फसलों की कृषि होती है।
राज्य में यह मिट्टी महासमुन्द, पंडरिया, राजिम, रायपुर, कवर्धा, मुंगेली एवं कुरूद तहसीलों में पायी जाती है।

२ लाल रेतीली मिट्टी : Red sandy soil (बलुई मिटटी)

प्रदेश के 30 से 35 प्रतिशत क्षेत्र में लाल रेतीली मिट्टी का विस्तार है। लोहे के ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण यह मिट्टी लाल रंग की होती है। यह प्रकृति से अम्लीय प्रकार की होती है। नाइट्रोजन एवं जीवांश (ह्यूमस) की इस मिट्टी में कमी पाई जाती है। इस मिट्टी में कुटकी, कोदो, बाजरा एवं ज्वार जैसे मोटे अनाज उपजाए जाते है। रेत की अधिकता होने के कारण इस मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता कम होती है। छत्तीसगढ़ राज्य में इस मिट्टी का विस्तार राजनांदगाँव, दुर्ग, कांकेर एवं बस्तर आदि जिलों में है।

३ लाल दोमट मिट्टी : Red loam Soil

राज्य में लाल-दोमट मिट्टी दन्तेवाड़ा एवं कोटा तहसीलों में मुख्यरूप से पाया जाता है। लोहे के ऑक्साइड की अधिकता के कारण यह मिट्टी लाल रंग की होती है। यह मिट्टी प्रकृति से अम्लीय होती है। जब इस मिट्टी में क्ले (Clay) की मात्रा अधिक होती है तो यह दोमट मिट्टी के नाम से जानी जाती है। इस मिट्टी में मुख्यतः रबी की फसल बोई जाती है। जल की कमी के कारण इस मिट्टी में खेती हेतु सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

४ लाल पीली मिट्टी : Red Yellow Soil (मटासी मिटटी)

इस मिट्टी का विस्तार छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक भू-भाग पर है। राज्य के लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्र में इस मिट्टी का विस्तार है। इस मिट्टी का निर्माण प्राचीन गोंडवाना चट्टानों के विघटन से हुआ है। इसमें नाइट्रोजन एवं जीवांश का अभाव तथा लौह ऑक्साइड की बहुलता है। लोहे के ऑक्साइड के कारण मिट्टी का रंग पीला होता है। यह मिट्टी अधिक अनउपजाऊ प्रजार की होती है सिंचाई द्वारा इसमे धान की खेती की जाती है। राज्य में इस मिट्टी का फैलाव बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, धमतरी, कवर्धा, एवं कोरबा जिलों में पाया जाता है।

५ लैटेराइट मिट्टी : Laterite soil (मुरमी या भाठा)

इस मिट्टी को छत्तीसगढ़ के लोग स्थानीय भाषा में भाटा कहते है। इसमें कंकड़ की अधिकता पायी जाती है। इस मिट्टी में एल्युमिनियम एवं आयरन ऑक्साइड की मात्रा अधिक पायी जाती है। इस मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता बहुत कम होती है। इसमें आवश्यक खनिज लवणों का भी अभाव पाया जाता है। यह एक प्रकार की अनुपजाऊ मिट्टी है जिसमे किसी प्रकार की फसल की उपज नही हो पाती है। कुछ भागों में सिंचाई द्वारा मोटे अनाज की खेती की जाती है। छत्तीसगढ़ में यह मिट्टी मुख्यरूप से रायपुर, बिलासपुर, चांपा, अम्बिकापुर, पाटन एवं सीतापुर जिलों में पाई जाती है।

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