छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक वनस्पति : छत्तीसगढ़ राज्य प्रारम्भ से वनों की दृष्टि से बहुत ही समृद्ध प्रदेश रहा है। इसके भू भाग का 45 प्रतिशत भाग वनों से आच्छादित है। यहाँ बस्तर, सरगुजा, रायगढ़, रायपुर और बिलासपुर जिले में वनों का विस्तार सर्वाधिक है। यहाँ के वनों को मुख्यरूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक वनस्पति – Chhattisgarh ki prakritik vanaspati
1. आरक्षित वन
इस प्रकार के वनों में बिना अनुमति प्रवेश निषेध होता है। यह मवेशियों को चराने पे पाबन्दी रहती है। छत्तीसगढ राज्य के कुल वन क्षेत्र का 38.67 प्रतिशत भाग आरक्षित श्रेणी में आता है।
2. संरक्षित वन
ऐसे वनों में आसपास अथवा स्थानीय रूप से निवास करने वालो को अपनी आवश्यकतानुसार लकड़ी काटने फल मूल इकट्ठा करने तथा जानवरों को चराने की सुविधा नियंत्रित रूप से प्रदान की जाती है। राज्य के कुल वन क्षेत्र का 50.70 प्रतिशत भाग संरक्षित वनों की श्रेणी में आता है।
3. अवर्गीकृत वन
इसके अंतर्गत आरक्षित एवं संरक्षित वनों के अतिरिक्त शेष वन समाहित है। यहाँ उधोग धंधों के लिए कच्चा माल प्राप्त करने की छूट रहती है। साथ ही जानवरों को स्वतंत्रतापूर्वक चराए जा सकता हैं। राज्य के कुल वन क्षेत्र का 10.63 प्रतिशत भाग ऐसे वनों की श्रेणी में समाहित है।
वन स्थिति रिपोर्ट 2015 के अनुसार छत्तीसगढ़ के 59772 वर्ग किमी भूभाग पर वनों का विस्तार है। मध्य प्रदेश (77,462 वर्ग किमी.) और अरुणाचल प्रदेश (67248 वर्ग किमी.) के पश्चात भारत में सर्वाधिक वन छत्तीसगढ़ में है। अर्थात् वन क्षेत्रफल की दृष्टि भारतीय राज्यों में छत्तीसगढ़ का तीसरा स्थान है।
यहाँ के वनों में मुख्यतः निम्नलिखित प्रजातियों के वृक्ष पाए जाते हैं-
छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले वृक्षों के प्रकार :-
1. साल
राज्य में साल के वन मुख्य रूप से बस्तर ज़िले में पाये जाते हैं। साल की लकड़ी का प्रयोग इमारतों में दरवाजे खिड़की तथा अन्य उपकरण और रेलवे के स्लीपर बनाने के लिए होता है।
2. सागौन
यहाँ सागौन के वृक्ष भी अधिक संख्या में पाये जाते हैं। सागौन का उपयोग मुख्यरूप से इमारती लकड़ी के रूप में फर्नीचर बनाने में होता है।
3. बांस
छत्तीसगढ़ राज्य बाँस उत्पादन के लिए सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। यहाँ बाँस की लुग्दी से कागज तैयार किया जाता है। यहाँ निवास करने वाली कमार जनजाति के लोगों का जीवन बांस के वनों पर ही निर्भर है। ये लोग बाँस के बर्तन, टोकरी और सजावट के समान बनाकर बाजारों में बेचते तथा अपना जीवन निर्वाह करते है।
4. तेन्दू पत्ता
तेन्दू पत्ता छत्तीसगढ़ राज्य के वनों की एकप्रमुख उत्पाद है। यहाँ बीड़ी उद्योग का यह प्रमुख आधार तेंदू पत्ता ही है। इसी से बीड़ी बनाई जाती है।
5. जंगली लकड़ियां
राज्य के वनों में बहुत से किस्म के ऐसे वृक्ष पाए जाते है जिसकी लकड़ियों का प्रयोग स्थानीय रूप से जलावन के रूप में होता है। यहाँ खाना बनाने के लिए इन्ही लकड़ियों का प्रयोग जलावन के रूप में किया जाता है।
छत्तीसगढ़ में वनों के प्रकार:-
छत्तीसगढ़ में वर्षा की मात्रा, तापमान के अंतर एवं अन्य भौगोलिक कारकों के आधार पर निम्नलिखित श्रेणी के वन पाए जाते हैं-
1. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन
ऐसे वन उन भागो में पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 100 से 150 सेमी के बीच प्राप्त होती है। इन वनों से मुख्यतः फल उत्पाद एवं लकड़ी दोनों ही मिलता हैं। इन वनों में मुख्यरूप से साल, सागौन, बाँस आदि के वृक्ष लाये जाते है। साथ ही बीजा, जामुन, महुआ, जाजा, हर्रा आदि फलदार वृक्ष भी पाए जाते हैं। ऐसे वन दक्षिण सरगुजा जिले और जशपुर के तपकरा रेंज में अधिक प्राप्त होते है। बिलासपुर, रायपुर, बस्तर, एवं रायगढ़ जिलों में भी इस प्रकार के वन मिलते हैं।
2. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन
राज्य के उन क्षेत्रों में ये वन पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 25 से 75 सेमी के मध्य होती है। ऐसे वन मुख्यरूप से उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वर्षा की मात्रा बहुत कम प्राप्त होती है। इन वनों से पत्ते, फल, जड़ आदि प्राप्त किया जाता है। कही कही ऐसे वनों से आंशिक रूप से इमारती लकड़ी भी प्राप्त होते हैं। इन वनों में मुखयतः पाए जाने वाले वृक्षों बबूल, कीकर, हर्ग, पलाश, तेन्दु, शीशम, हलदू, सागौन, सिरीश आदि है। राज्य में रायगढ़ जशपुर, उत्तर-पूर्वी बिलासपुर रायपुर तथा धमतरी में इस प्रकार के वन पाए जाते हैं।