उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात – Tropical Cyclone :- धरातल पर कर्क और मकर रेखा के मध्य जो वायुमण्डलीय विक्षोभ उत्पन्न होते है उन्हें ही उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहा जाता हैं। ये गति, आकार तथा मौसमी दशाओं के आधार पर भिन्न प्रकार के होते हैं।
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की विशेषताएँ
(i) आकार एवं विस्तार-
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात सामान्यतः लघु आकार के होते हैं। इनका व्यास 80 किलोमीटर से 300 किलोमीटर तक होता है। ये सागरों के ऊपर अधिक सक्रिय होते हैं किन्तु स्थल पर पहुँच कर क्षीण हो जाते हैं।
(ii) स्वरूप-
इन चक्रवातों के केद्र में वायुदाब बहुत कम होता है । इसमे समदाब रेखाएँ सामान्यतः वृत्ताकार तथा पास पास होती है। इनकी संख्या कम पायी जाती है ।
(iii) तापमान-
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में तापमान सम्बंधित भिन्नताएँ देखने को नहीं मिलती है क्योंकि इन चक्रवातों के विकास में वाताग्र का सहयोग नही होता है।
(iv) गति-
ये चक्रवात महासागरीय भाग में बहुत तेज चलते है। किन्तु स्थलीय भाग में आते आते क्षीण हो जाते है। क्षीण चक्रवात 32 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से तथा हरीकेन जैसे चक्रवात 120 किलोमीटर प्रति घंटा से भी अधिक वेग से चलते हैं । ये हमेसा गतिशील नहीं रहते है। कभी-कभी तो ये एक ही स्थान पर कई दिनों तक वर्षा कराते है।
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(v) भ्रमण पथ-
उष्णकटिबन्धीय चक्रवात मुख्यरूप से व्यापारिक पवनों के साथ पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं ।
(vi) अवधि-
उष्णकटिबन्धीय चक्रवात ग्रीष्मकाल में आते है। शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की तुलना में इनकी संख्या तथा प्रभाव-क्षेत्र कम होता है ।
(vi) प्रभाव-
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात तेज गति के कारण बहुत विनाशकारी होते हैं । इनके आने से भयंकर वर्षा होती है। भारत मे पूर्वी तट पर बंगाल की खाड़ी में प्रायः ये चक्रवात आते है जिससे अपार धन-जन की हानि होती है। अधिकांश उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात ग्रीष्मत्ऋतु के अन्त में उत्पन्न होते हैं ।
उत्पत्ति क्षेत्र
इन चक्रवातों की उत्पत्ति के प्रधान क्षेत्र विषुवतरेखा के न्यून वायुदाब के क्षेत्र हैं। जिसका विस्तार कर्क रेखा से लेकर मकर रेखा तक है।
(क)कैरेबियन सागर में पश्चिमी द्वीपसमूह में ये सबसे अधिक आते है।
(ख) हिन्द महासागर में मेडागास्कर द्वीप के पूर्व तथा अरब सागर में इनकी उत्पत्ति मार्च-अप्रैल के महीने में होती है।
(ग) भारत में ये मुख्यरूप से बंगाल की खाड़ी में गर्मी के महीने में आते है।
(घ) ऑस्ट्रेलिया में उत्तर-पूर्व तथा उत्तर पश्चिमी तट पर इनका प्रभाव देखने को मिलता है।
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के प्रकार (Kinds of Tropical Cyclones)
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में मौसम, आकार एवं स्वभाव में बहुत भिन्नता पाई जाती है । तीव्रता के आधार पर इन्हें निम्न चार वर्गों में रखा जा सकता है-
1. क्षीण चक्रवात
(i) उष्ण कटिबन्धीय विक्षोभ,
(ii) उष्ण कटिबन्धीय अवदाब.
2. प्रचण्ड-चक्रवात
(i) हरीकेन या टाइफून,
(ii) टारनैडो
(i) उष्ण कटिबन्धीय विक्षोभ (Tropical Disturbance)-
ये चक्रवात भूमध्यरेखीय न्यून वायुदाब की पेटी से सम्बन्धित हैं। उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में सबसे अधिक यही उत्पन्न होते हैं। इनमें हवाएँ धीमी वेग से बाहर से केन्द्र की तरफ चलती हैं। ये चक्रवात मन्द गति से आगे बढ़ते रहते है। कभी कभी एक ही स्थान पर कई दिनों तक स्थिर हो जाते है। उष्ण कटिबन्धीय विक्षोभ में हवाएँ पूर्व से पश्चिम की तरफ चलती हैं। इस विक्षोभ को पूर्वी तरंग के नाम से भी जाना जाता है। इनकी गति 300 से 500 किमी प्रति-दिन होती है। इन हवाओं से कहीं – कहीं वर्षा होती है।
(ii) उष्ण कटिबन्धीय अवदाब (Tropical Depresion)-
छोटे आकार वाले उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों को अवदाब कहा जाता है। इसमें समदाब रेखाएं एक से अधिक होती हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण व्यापारिक हवाये न हो कर अन्तर-उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण है। इन अवदाब में दाब प्रवणता बहुत कम होती है। जिसके कारण हवाओं की गति 40 से 50 किमी प्रति घण्टा से अधिक नहीं हो पाती है। इनकी दिशा और गति अनियमित होती है। ये अवदाब मुख्य रूप से भारत और आस्ट्रेलिया में ग्रीष्म ऋतु में अधिक आते हैं। कभी-कभी इनसे अधिक वर्षा होने से नदियों में बाढ़ आ जाती हैं, जिससे जन-धन की अपार क्षति होती है। जापान व चीन में इनका प्रभाव अधिक देखने को मिलता है।
(iii) हरीकेन या टाइफून-
ये अधिक समदाब रखाओं वाली विस्तृत उष्ण कटिबन्धीय चकवात हैं। इनमे समदाब रेखाएं दूर दूर तथा अनेक होती है। संयक्त राज्य अमेरिका में इन्हें हरिकेन तथा चीन में इनको टाइफून कहते है। ये बहुत तीव्र गति से चलते वाले चक्रवात होते हैं। इन चक्रवातों की संख्या कम तथा प्रभाव-क्षेत्र सीमित होता है। इससे लंबे समय तक मूसलाधार वर्षा होती है। ये आकर में छोटे से बड़े कई तरह के होते है। ये लघु (150 किलोमीटर व्यास) तथा विस्तृत (650 किलोमीटर व्यास) भी होते हैं ।
इनके केन्द्र में न्यूनतम वायु-दाब (900 से 950 मिलीबार) पाया जाता है । समुद्र तटीय भागों में इनसे सर्वाधिक हानि होती है। हरिकेन अत्यधिक विशालकाय तथा प्रचण्ड होते हैं। लेकिन इनका जलवायु सम्बन्धी महत्व नगण्य होता है, क्योंकि इनकी संख्या बहुत कम होती है तथा यदा-कदा आते हैं। इसके अलावा अयन रेखाओं के मध्य केवल कुछ खास भागों में ही ये पाए जाते है।
(iv) टारनेडो-
टारनेडो देखने मे कीपाकर स्तम्भ की तरह होते है। इनका निचला भाग बहुत पतला तथा ऊपरी भाग चौड़ा होता है। ये लघुतम किन्तु प्रभाव में सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं। इनका मुख्य कार्य-क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका है। टारनेडो के केन्द्र में न्यूनतम वायु-दाब पाया जाता है। परिधि से केन्द्र की ओर हवाएँ 800 किलोमीटर प्रति घण्टा वेग से चलती हैं जो बहुत प्रलयकारी होती हैं। ये ग्रीष्म तथा वसन्त ऋतु में सर्वाधिक सक्रिय होती हैं । इनकी उत्पत्ति वाताग्रों से शीत ऋतु में होती हैं।
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों का वितरण (Distribution of Tropical Cyclone)
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात दोनो गोलार्धों में मुख्यत: 5° से 15° अक्षांशों के मध्य उत्पन्न होते हैं । ये विश्व के निम्लिखित क्षेत्रों में मुख्यरूप से सक्रिय रहते है:-
उत्तरी अटलांटिक महासागर- ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवात मैक्सिको की खाड़ी, कैरीबियन सागर, पश्चिमी द्वीपसमूह और पश्चिमी अफ्रीका के द्वीपों में मई-जून से अक्टूबर-नवम्बर के मध्य सक्रिय रहते हैं । मैक्सिको की खाड़ी में इन चक्रवातों को टॉरनेडो कहा जाता है ।
चीन सागरीय क्षेत्र- इस क्षेत्र में आने वाले चक्रवातों को टाइफून कहा जाता हैं। ये यहाँ मई से दिसम्बर तक 20 से 30 बार तक आते हैं । दक्षिणी चीन, वियतनाम, फिलीपाइन्स एवं दक्षिणी जापान तक इन चक्रवातों का प्रभाव देखने को मिलता है ।
दक्षिणी प्रशान्त महासागर- पुर्वी ऑस्ट्रेलिया में स्थित द्वीपों से लेकर हवाईद्वीप तक लगभग 140° पश्चिमी देशान्तर तक दिसम्बर से अप्रैल माह तक चक्रवात अधिक सक्रिय रहते हैं । ऑस्ट्रेलिया में ये विली विलीज के नाम से जाने जाते हैं। ये चक्रवात यहाँ 10 से 15 बार तक आते हैं ।
उत्तरी हिन्द-महासागर- भारत के पुर्वी तट पर बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर में अप्रैल से दिसम्बर तक साइक्लोन नामक चक्रवात आते रहते है। अरब सागर में ये वर्ष में 2 से 3 बार तथा बंगाल की खाडी में 5 या 7 बार आते हैं।
दक्षिणी हिन्द महासागर- मेडागास्कर द्वीप, मॉरीशस तथा रियूनियन द्वीपों में नवम्बर से अप्रैल तक 1 या 2 बार तक ये चक्रवात सक्रिय होते है।
पश्चिमी मध्य प्रशान्त महासागर- ये चक्रवात मध्य अमेरिका में इसके पश्चिमी तट पर जून से नवम्बर माह में 5 या 7 बार तक आ जाते हैं ।