सागरीय लहरों द्वारा निर्मित स्थलाकृति : Ocean topography created by sea waves – समुद्री अपरदन समुद्र तट के पास उठने वाली लहरों द्वारा होता है। सागरीय लहरें अपरदन के अन्य कारकों के तरह ही विभिन्न स्थलाकृतियों (ocean topography) का निर्माण करती हैं।
समुद्री लहरों द्वारा अपरदन कार्य निम्नलिखित पाँच रूपों में सम्पन्न होता है–
(1) अपघर्षण
(2) सन्निघर्षण
(3) जल गति क्रिया
(4) घुलन (संक्षारण) क्रिय
(5) जलीय दाब
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सागरीय लहरों द्वारा निर्मित स्थलाकृति : Ocean topography created by marine erosion
(1) तटीय भृगु-
सागरीय लहरें तटीय चट्टानों को नीचे से अपरदित करती रहती हैं, जिससे उनका आधार कट जाता है और ऊपरी भाग खड़े रहते हैं जो आगे की ओर लटके
दिखाई देते हैं. यह आकृति भृगु कहलाती है।
(2) लघु नीवेशिका-
सागरीय लहरों द्वारा निर्मित स्थलाकृति
जब किसी तट पर कठोर एवं मुलायम चट्टानें समानान्तर रूप में पायी जाती हैं, तो लहरों का जल कठोर चट्टानों की सन्धियों में प्रवेश करके वहाँ की मुलायम चट्टानों को भीतर ही भीतर अपरदित करता रहता है। इससे कोमल चट्टानों में खाली स्थान बन जाते हैं जो आकार में अण्डाकार होता है। ऐसी आकृतियाँ को लघु नीवेशिका या अण्डाकार कटाव कहते हैं।
(3) तटीय कंदरा-
जब सागर तट पर कठोर कगार के नीचे मुलायम चट्टानें पायी जाती हैं, तो उन्हें लहरें आसानी से काटकर खोखला बना देती हैं। इस खोखले भाग में वायु लहरों के दबाव से दब जाती है तथा लहरों के पीछे हैटने पर वापस फैल जाती है। इस प्रकार वायु के बार बार फैलने और सिकुड़ने से उनका आकार बड़ा हो जाते हैं जो गुफा का रूप ले लेते हैं।
(4) वात छिद्र-
समुद्र तटीय भागो में निर्मित गुफाओं में लहरों के आक्रमण से भीतर की वायु संकुचित होती है एवं बाहर निकलने का प्रयास करती है। जिससे कभी-कभी कमजोर स्थान वाली गुफा की छति को तोड़कर ऊपर निकलती है जिससे छिद्र बन जाता हैं तथा जब गुफा में हवा भरता है तो इससे तेज आवाज़ के साथ हवा बाहर निकलती है। इसे ही वात छिद्र कहते है।
(5) ज्यो-
कंदरा की छत गिर जाने से सागर तट के किनारे छोटी छोटी खाड़ियों का निर्माण हो जाता है। इन खादियों को ज्यों कहते है।
(6) मेहराब-
सागर तट पर स्थित चट्टान जब सागर में कुछ दूर तक फैली रहती है तथा उनके मध्य में मुलायम चट्टान का सागरीय लहरों द्वारा कटाव हो जाता है जिससे एक छिद्र की रचना होती है। जिससे उसके आरपार दिखाई देने लगता है ये छिद्र बड़े होकर विशाल द्वार का रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हें मेहराब कहा जाता है।
(7) तटीय स्तम्भ-
सागरीय लहरों द्वारा निर्मित स्थलाकृति
सागर के लहरों से अपरदित होने से मेहराब की छत टूटकर नीचे गिर जाती है जिससे सागर की तरफ वाला भाग तट से अलग हो जाता है और एक खंभे के रूप में खड़ा रहता है जिसे तटीय स्तम्भ कहा जाता है।
(8) तरंग घर्षित प्लेटफार्म-
समुद्री लहरें तटीय कगार पर लगातार कटाव करती रहती है। इस कटाव से भृगु का ऊपरी लटकता हुआ भाग टूटकर गिर जाता है। जिससे उस स्थान से भृगु पीछे हटता रहता है अंततः भृगु के सामने तटीय भाग पर जल के भीतर एक प्लेटफार्म बन जाता है जिसे तरंग घर्षित प्लेटफार्म कहते है।
(9) अपतटीय सोपान-
समुद्र के तटीय भाग में लहरों द्वारा लगातार कटाव होता रहता है जो हमेशा एक दर से नहीं होता है यह कटाव कभी कम तो कभी ज्यादा होता है।इससे यह सीढ़ीनुमा बन जाता है। इसे है अपतटीय सोपान कहते है।
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सागरीय लहरों के निक्षेपण द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ : depositional Ocean topography created by sea waves
(1) तरंग निर्मित प्लेटफार्म-
समुद्र के तट पर सागरीय लहरों द्वारा अपरदित किए गए अवसाद का निक्षेपण होता रहता है। तट के उथले भागो में निक्षेपित पदार्थों से सीढ़ीनुमा प्लेटफार्म बन जातो हैं जो जल में डूबा रहता हैं बाद में आंतरिक हलचल या समुद्र तल नीचे होने से यह बाहर आ जाता है। इसे तरंग निर्मित प्लेटफार्म कहते हैं।
(2) पुलिन-
सागर के तटीय भागो में सागरीय लहरों के अपरदन से प्राप्त अवसाद के कारण सागरीय तल उथला हो जाता है। इसी उथले भाग को पुलिन कहते है। यह मुख्य रूप से बालू, बजरी, कंकड़, पत्थरों से निर्मित होता है। ये चंद्राकर आकार में जमा होते है।
(3) कस्प पुलिन-
सागरीय लहरों द्वारा निर्मित स्थलाकृति
सागरीय भाग में लहरों के द्वारा बालू, कंकर तथा बजरी जमा होता रहता है जिसके कारण लंबे तथा पतले कटक समुद्र की तरह निर्मित हो जाते हैं। जिनसे होकर समुद्र में कुछ दूर तक रास्ता बं जाता है। इस आकृति को ही कस्प पुलिन कहते है।
(4) रोधिका तथा रोध-
रोधिका एक प्रकार के बाँध होते हैं जो सागर तट के समानांतर निर्मित होते है इनका निर्माण लहरों द्वारा अवसादों के निक्षेपण से होता है। निक्षेपण द्वारा तट पर बनने वाले कटक या बाँध ही रोधिका कहते हैं। ये बाँध सागर जल में डूबे हुए एवं बाहर दोनों जगह हो सकते हैं। जब ये ज्वार के समय सागरीय जल में डूब जाते हैं तो रोधिका कहलाते हैं, किन्तु रोधिका से ऊँची उठी कटक या बाँध रोध कहलाती है।
(5) अपतटीय रोधिका-
सागरीय लहरों द्वारा निर्मित स्थलाकृति
समुद्र तट से अधिक दूरी पर निर्मित होने वाली रोधिकाएँ अपतटीय रोधिकाएँ कहलाती हैं। इनका निर्माण मुख्य रूप से बालू से होता है।
(6) संलग्न भित्तियाँ-
समुद्र तट पर सागरीय अवसाद से निर्मित रोधिकाए जिनका ऊपरी सिरा जल की सतह के ऊपर दिखाई देता है। इसका एक सिरा स्थल से जुड़ा होता है, किंतु दूसरा सिरा समुद्र की ओर निकला रहता है। ऐसी आकृति को संलग्न भित्ति या भूजिह्वा कहते है।
(7) टोम्बोलो-
ऐसी भित्तियाँ जो तटवर्ती छोटे-छोटे द्वीपों को सागर तट से जोड़ती है उन्हें संयोजन रोधिका कहा जाता है। दो शीर्ष स्थलों को मिलाने वाली रोधिका संयोजक रोधिका तथा तट से किसी द्वीप या शीर्ष स्थल से किसी द्वीप को मिलाने वाली रोधिका टोम्बोलो कहलाती है।
(8) हुक-
तट से जुड़ी हुई कोई भित्ति सागर की ओर अधिक मुड़ी हो तो वह हुक कहलाती है। ऐसी आकृति तट पर लहरों के दो दिशाओं से आने के कारण बनती है। एक हुक के बाद उससे जुड़ी कर कई और हुक भी बनती रहती है।