चक्रवात : Cyclones :- अस्थाई और परिवर्तनशील हवाओं के गोलाकार या अंडाकार ऐसे क्षेत्र जिनके केन्द्र में निम्न वायुदाब और बाहर उच्च वायुदाब होता है, चक्रवात कहलाते हैं। ट्रिवार्था के अनुसार “चक्रवात अपेक्षाकृत निम्न के वे क्षेत्र हैं जो कि संकेन्द्रीय समदाब रेखाओं से घिरे होते हैं.” (Cyclones are areas of relatively low pressure surrounded by concentric closed isobars.)
चक्रवात में न्यून वायुदाब केन्द्र के समीप और केन्द्र से बाहर की ओर सभी दिशाओं में वायुदाब क्रमशः बढ़ता जाता है। हवाएँ बाहर से केन्द्र की ओर प्रवाहित होती हैं। फैरल के नियमानुसार हवाएँ उत्तरी गोलार्दध में अपने दायीं ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बायीं ओर मुड़ जाती हैं अर्थात् उत्तरी गोलार्द्ध में हवाएँ घड़ी की सुई की विपरीत दिशा (Anticlockwise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा में (Clockwise) मुड़ जाती हैं।
चक्रवात के प्रकार
(1) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात : Tropical Cyclone
(2) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात : Temperate Cyclones
चक्रवात आकर के हिसाब से कई प्रकार के होते है। मध्य अक्षांशो के पास ये 320 से 480 किलो मीटर तक और कभी कभी ये 3200 किलो मीटर तक भी पाए जाते है।
चक्रवात में तापमान हमेशा ऋतुओं के अनुसार बदलता रहता है। इनका पृष्ठ भाग हमेशा शीतल होता है।
चक्रवात प्राय स्थाई वायु की दिशा में प्रवाहित होते है। उष्ण कटबन्धीय चक्रवात व्यापारिक तथा मानसून हवाओं के साथ और शीतोष्ण चक्रवात पछुवा हवाओं के साथ प्रवाहित होते है।
उष्ण कटबन्धीय चक्रवातों को अनेक नामों से जाना जाता है। चीन में टाइफून, अमेरिका में टरनेडो, पश्चिमी द्वीप समूह में हरिकेन के नाम से इसे जानते है।
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प्रतिचक्रवात (Anti-Cyclone)
प्रतिचक्रवात चक्रवात के विपरीत वृत्ताकार समदाब रेखाओं से घिरा वायु का एक क्रम होता है, जिसके केन्द्र में वायुदाब उच्चतम तथा बाहर की तरफ न्यून वायुदाब होता है। प्रतिचक्रवात में इसी कारण हवाएँ केन्द्र से बाहर की तरफ चलती है। प्रतिचक्रवात उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च दाब क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलते है। ये भूमध्यरेखीय भागों में बहुत कम पाए जाते है।
शीतोष्ण कटिबन्ध में चक्रवातों के विपरीत प्रतिचक्रवातों से मौसम साफ होता है तथा हवाएँ मन्द गति से चलती हैं। चक्रवात के समान प्रतिचक्रवातों के आगमन की सूचना चन्द्रमा या सूर्य के चतुर्दिक प्रभामण्डल द्वारा नहीं मिल पाती है। प्रतिचक्रवात के नजदीक आते ही आकाश से बादल छँटने लगते हैं, मौसम साफ होने लगता है तथा हवा मन्द पड़ जाती है।
प्रतिचक्रवात की विशेषताएं:-
1. ये गोलाकार होते है। किंतु कभी-कभी ये V आकार के भी बनते हैं। केन्द्र में वायु का दबाव अधिकतम तथा बाहर न्यूनतम होता है। केन्द्र तथा परिधि के वायुदाबों का अन्तर 10mb से 35mb तक होता है। समदब रेखाएं दूर दूर होती है जिसके कारण केन्द्र से बाहर की ओर वायुदाब में परिवर्तन सामान्य होता है।
2. प्रतिचक्रवात आकर में चक्रवातों की तुलना में बहुत बड़े होते हैं। इनकी व्यास, चक्रवातों की अपेक्षा 75 प्रतिशत अधिक बड़ी होती है।
3. प्रतिचक्रवात 30-35 किलोमीटर प्रतिघण्टा की वेग से चक्रवातों के पीछे चलते हैं। इनका मार्ग व दिशा निश्चित नहीं होती है।
4.ये उत्तरी गोलार्द् में घड़ी की सुईयों के अनुकूल (Clockwise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुईयों के प्रतिकूल (Anticlockwise) चलते है।
5. प्रतिचक्रवात के केन्द्र में हवाएँ ऊपर से नीचे उतरती हैं। केन्द्र का मौसम साफ होता है और वर्षा की सम्भावना नहीं होती है।
प्रतिचक्रवात के प्रकार :-
हैजिल्क ने 1909 ई० में प्रतिचक्रवातों को शीतल तथा उष्ण दो प्रकारों में विभाजित किया।
गिडीज ने प्रतिचक्रवातों को तीन प्रकार में बाटा है:-
(1) बड़े प्रतिचक्रवात ये इतने विशाल होते हैं कि पूरे महाद्वीप को समेटे रहते है। इनका व्यास चक्रवात के तुलना में बहुत अधिक होता है।
(2) अस्थायी प्रतिचक्रवात इनका व्यास 250-300किमी० के आसपास होता हैं। ये महाद्वीपों के तटीय भागों को ही प्रभावित करते हैं।
(3)चक्रवात जनित प्रति चक्रवात इनका निर्माण दो शीतोष्ण चक्रवातों के मध्य उच्च दाब के कारण होता है।