कार्स्ट स्थलाकृतियां :- Karst topography भूमिगत जल अपरदन और निक्षेपण का एक महत्वपूर्ण कारक है। नदी, वर्षा तथा अन्य माध्यम से प्राप्त जल का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है यही भूमिगत जल कहलाता है।
सैलिसबरी के अनुसार किसी प्रदेश की अधोभूमि का वह तल जिसके नीचे चट्टानें जल से ओत-प्रोत रहती हैं, वह उस प्रदेश का भूमिगत जल तल कहलाता है।
भूमिगत जल का सर्वाधिक प्रभाव चूना क्षेत्रों में होता है। चूना प्रदेश को कार्स्ट प्रदेश (Karst Region) भी कहते है। भूमिगत जल घुलन क्रिया द्वारा अपरदन का कार्य करता है। युगोस्लाविया के एड्रियाटिक तट के चुना पत्थर क्षेत्र के स्थलाकृतियों के नाम के आधार पर ऐसी आकृतियों को कार्स्ट स्थलाकृतियां कहते हैं। घुलन क्रिया के लिए जल का अम्लीय होना जरूरी है। जल कार्बन डाइऑक्साइड के साथ मिलकर कार्बनिक अम्ल बनाता है जो घुलन क्रिया का सबसे बड़ा कारक है।
कार्स्ट स्थलाकृतियां :- Karst topography
भूमिगत जल द्वारा अपरदनात्मक स्थलरूप ( कार्स्ट स्थलाकृतियां ) : Karst Topography by erosion
टेरा रोसा
चुना प्रधान क्षेत्रों में मिट्टी जल को सोख लेती है जिससे जल घुलन क्रिया करता है तथा लाल एवं भूरी मिट्टियों का निर्माण होता है। इन मिट्टियों को टेरा रोसा कहते है। यह मिट्टी मुख्य रूप से ब्राजील और युगोस्लाविया में पाई जाती हैं।
लैपिज
कार्स्ट स्थलाकृतियां
चुना पत्थर वाले प्रदेशों में कार्बन मिश्रित जल धरातल से होकर बहता है तथा चट्टानों के घुलनशील कोमल भागों को बहा ले जाता है। जिससे ऊपरी सतह उबड खाबर हो जाती है। यहां उंगली नुमा छोटी-छोटी रचनाएं उभर आती है। इन्हीं को लैपिज कहते हैं। इसको जर्मन भाषा में karrens अंग्रेजी में clint तथा फ्रांसीसी में लैपिज कहा जाता है।
घोल रंध्र
कार्स्ट स्थलाकृतियां
कार्स्ट प्रदेशों में कार्बन डाइऑक्साइड युक्त जल धरातल के संधियों में प्रवेश कर उनका विस्तार बढ़ा देता है। जिससे छोटे-छोटे रंध्र का निर्माण होता है। इन्हें को घोल रंध्र कहते हैं।
विलय रंध्र
विलय रंध्र, घोल रंध्र से आकार में बड़े होते हैं। एक ही जगह पर अम्लीय जल बार-बार प्रवाहित होता है तो ऐसे रचनाओं का निर्माण होता है। कभी-कभी इनका आकार इतना बढ़ जाता है कि पूरी नदी का जल इसमें समाहित हो जाता है।
डोलाइन
कार्स्ट स्थलाकृतियां
जब घोल रंध्र काफी चौड़े हो जाते हैं तो उन्हें डोलाइन कहते हैं। ये आकार में 30 से 40 फीट चौड़े तथा 10 से 70 फीट तक गहरे हो सकते हैं। मुख्य रूप से युगोस्लाविया में ऐसी आकृतियों पाई जाती हैं।
यूवाला
जब कई डोलाइन ध्वस्त होकर एक साथ मिल जाते हैं तो एक विशाल आकार के गर्त का निर्माण होता है। इस गर्त को युवाला कहते हैं। इनका व्यास 1 किलो मीटर या उससे अधिक होता हैं। इनमें धरातलीय जल प्रवाह व्यवस्था लुप्त हो जाती है तथा भूमिगत जल प्रवाह की व्यवस्था विकसित होने लगती है।
पोल्जे
यूवाला से भी अधिक विस्तृत गर्त को पोल्जे कहते हैं। कुछ क्षेत्रों में यह राज कुंड के नाम से भी जाने जाते हैं। यह कई युवाओं के मिलने से बनते हैं। इनकी तली समतल तथा दीवारें खड़ी होती हैं। पश्चिमी बाल्कन क्षेत्र का सबसे बड़ा पॉलजे लिवनो पोल्जे है।
पोनार
एक एक सुरंगनुमा रचना है जो कार्स्ट प्रदेशों में घुलन क्रिया से विकसित होती है। चुना क्षेत्रों में जल घोल रंध्र द्वारा प्रवेश कर आंतरिक भागों में कई क्षेत्रों को मिलाकर एक कर देता है जिनसे आंतरिक नदियों का मार्ग विकसित होता है। इन्हें ही पोनार कहते हैं।
गुफाएं
कार्स्ट स्थलाकृतियां
चुना पत्थर के क्षेत्रों में कार्बन युक्त जल धरातल के नीचे की मिट्टी को घुला कर गुफाओं का निर्माण करता है जो ऊपर से दिखाई नहीं देते हैं। ये गुफाएं छोटे से बड़े आकर तक होती है।
कार्स्ट खिड़की
जब कभी गुफा की छत गिर जाती है तो गुफा का आंतरिक संरचना तथा बहता हुआ आंतरिक जल ऊपर से दिखाई देने लगता है इसे ही कार्स्ट खिड़की कहते हैं।
अंधी घाटी
चुना पत्थर वाले प्रदेशों में धरातल पर बहने वाली नदियां मार्ग में पड़ने वाले रंध्र में प्रवेश कर विलीन हो जाती हैं। यह विलुप्त जलधाराएं बाद में पातालीय नदियों का रूप ले लेती हैं और अंदर ही अंदर प्रवाहित होती हैं। आगे की घाटी शुष्क हो जाती है। इन्हीं शुष्क घाटियों को अंधी घाटी कहते हैं। कभी-कभी इन घाटियों में वर्षा का जल प्रवाहित होता है।
प्राकृतिक पुल
कार्स्ट प्रदेश या चुना पत्थर युक्त क्षेत्रों में घुलन क्रिया से गुफाओं का निर्माण होता है। गुफाओं का कुछ हिस्सा कभी-कभी धस जाता है तथा कुछ भाग वैसा ही बना रहता है जिससे पुलिया जैसी आकृति का निर्माण हो जाते हैं। इसे ही प्राकृतिक पुल कहते हैं।
हम्स
चुना प्रदेशों में कोमल चट्टाने घुल कर बह जाती है तथा कठोर चट्टाने अपने जगह पे स्थिर रहती है। जिससे पूरे क्षेत्र में कुछ गुंबदाकार अवशेष दिखाई देते है इन्हीं को हम्स कहते है।
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भूमिगत जल द्वारा निर्मित निक्षेपणात्मक स्थलरूप ( कार्स्ट स्थलाकृतियां ) : Karst Topography by deposition
भूमिगत जल के नीचे ऊपर से निम्नलिखित आकृतियों का निर्माण होता है:-
स्टैलेक्टाइट
चुना प्रधान क्षेत्रों में कंदराओ से नीचे जल टपकता रहता है। इस जल में चुना तथा अन्य तत्वों का मिश्रण होता है। जल के टपकने पर उनमे उपस्थित तत्व वहीं कंदरा की छत में चिपके रह जाते हैं। यह क्रिया लंबे समय तक चलती है। जिससे कंदरा की छत से नीचे की तरफ एक लटकते हुए स्तम्भ का निर्माण होता है इसी को स्टैलेक्टाइट कहते है ।
स्टेलेगमाइट
कंदरा से टपकते हुए जल में चुना तथा अन्य तत्वों का मिश्रण होता है। जल टपकने के साथ सूख जाता है तथा उसमें उपस्थित चुना तथा अन्य तत्व वहीं जमा हो जाते हैं। जिससे एक खंबे जैसी आकृति का निर्माण होता है। इसका आधार चौड़ा तथा ऊपरी हिस्सा पतला होता है। इस आकृति को स्टैलेक्टाइट कहते हैं।
कंदरा स्तम्भ
इसका निर्माण स्टैलेक्टाइट और स्टेलेगमाइट के आपस में मिलने से होता है।
ड्रिप स्टोन
जब गुफा की छत से दरार के माध्यम से जल टपकता है तो वहां परदे के समान पतले आकार में स्तम्भ का निर्माण होता है इसे है ड्रिप स्टोन कहते है।
कैलिश
शुष्क तथा रेगिस्तानी प्रदेशों में छोटे-छोटे रंध्रों से जल रिसता हुआ धरातल पर आ आता है। यह अपने साथ घुले हुए खनिज पदार्थों को ऊपर ले आता है। जल धरातल पर आकर वाष्पीकृत हो जाता है तथा खनिज पदार्थ मलबे के रूप में वही जमा हो जाते हैं। इसे ही कैलिश कहते हैं। दक्षिण अमेरिका के चिल्ली तथा पेरू में इस प्रकार की आकृतियां पाई जाती हैं।