वायुमंडल के तत्व : Elements of Atmosphere :- वायुमंडल (Atmosphere) जलवायु विज्ञान का एक मूलभूत तत्व है। जलवायु विज्ञान भूगोल की एक प्रमुख शाखा है। जिसमें जलवायु की प्रकृति तथा तत्वों का अध्ययन किया जाता है। जलवायु विज्ञान में वायुमंडलीय दशाओं, मौसम तथा प्राकृतिक वातावरण पर उसके प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। वायुमंडल में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तन जैसे मौसम, मेघ, वर्षा, वायु राशियां, आंधी तूफान आदि का अध्ययन जलवायु विज्ञान में ही किया जाता है।
वायुमंडल क्या है ? What is Atmosphere?
पृथ्वी के चारो और पाए जाने वाले रंगहीन, स्वादहीन, गंधहीन आवरण को वायुमंडल ( Atmosphere) कहा जाता हैl पृथ्वी के चारों तरफ वायुमंडल का निर्माण 1 करोड़ वर्ष पूर्व संभावित किया गया है जबकि यह अपने वर्तमान अवस्था में आज से लगभग 58 वर्ष पूर्व आया ।
भूगोलवेत्ता त्रिवार्था के अनुसार “गैसों का एक विशाल आवरण जो पृथ्वी का अभिन्न अंग है और उसे चारो तरफ से घेरे हुए है वायुमंडल कहलाता है।”
यह सौर विकिरण की लघु तरंगों के लिए पारदर्शी है लेकिन पार्थिव विकिरण की लंबित तरंगों के लिए अपारदर्शी है। जो सूर्य से आने वाली ऊष्मा को धरातल तक आने देता है किन्तु धरातल से विकिरण होने वाली पार्थिव विकिरण को वायुमंडल से बाहर नहीं जाने देता। इस प्रकार यह ऊष्मा को रोककर विशाल ग्रीन हाउस प्रभाव का निर्माण करता है। जिसमें पृथ्वी पर औसतन 15 डिग्री सेल्सियस तापमान बना रहता है। यही तापमान पृथ्वी पर जैव मंडल के विकास का आधार है ।
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वायुमंडल के तत्व : Elements of Atmosphere
वायुमंडल का संगठन : Components of Atmosphere
वायुमंडल गैसों का मिश्रण हैं जो विभिन्न प्रकार के गैस, जलवाष्प, धूल कणों से बना है। जिसमें ठोस और तरल पदार्थों के कण असमान मात्रा में मौजूद हैं। इसमें नाइट्रोजन सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके बाद ऑक्सीजन, ऑर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, नियान, हिलियम एंव हाइड्रोजन आदि गैस आते हैं। हवा में उपस्थित गैसों का विवरण नीचे दिया जा रहा है जो वायुमंडल में निचले भाग में पाई जाती हैं।
वायुमंडल के तत्व : Elements of Atmosphere
नाइट्रोजन (78.03 %)
यह वायुमंडलीय गैसों में सर्व प्रमुख गैस है। क्यूमिनस पौधे तथा सैवाल आदि प्रजातियां मृदा में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं।
ऑक्सीजन (20.99%)
स्थल से 120 किलोमीटर की ऊंचाई तक ऑक्सीजन पाई जाती है। यह जंतुओं तथा मनुष्यों के लिए जीवन दायक गैस है। हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में वायुमंडल में विशुद्ध ऑक्सीजन मुक्त करते हैंl
ऑर्गन (0.93%)
यह एक अक्रिय गैस है। अक्रिय गैसों में यह गैस सर्वाधिक मात्रा में वायुमंडल में पाई जाती है। इसके अलावा वायुमंडल में हिलियम, नियॉन आदि अक्रिय गैसें बहुत कम मात्रा में पाए जाते हैं l
कार्बन डाइऑक्साइड (0.033%)
यह एक भारी गैस है। सौर विकिरण के लिए यह गैस पारगम्य है किंतु पार्थिव विकिरण के लिए ये अपारगम्य होती हैं। इस कारण यह वायुमंडल में ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करती है। CO2 का जब सांद्रण वायुमंडल में बढ़ जाता है तो अनेक समस्याएं पैदा होती हैं। दो निम्न कारणों के फल स्वरुप वायुमंडल में CO2 की मात्रा तेजी से बढ़ती जा रही है। बढ़ती दर से जीवाश्म के दहन के कारण CO2 की अधिकाधिक मात्रा में वायुमंडल में विमोचन हो रहा है।
अत्यधिक तीव्र गति से वन विनाश के कारण वन क्षेत्रों में हास् होने के कारण CO2 के उपयोग में निरंतर कमी होती जा रही है। क्योटो प्रोटोकॉल 1997 में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में कमी किए जाने के बारे में वैश्विक सहमति हुआ था l
Ozone layer
ओजोन गैस की मात्रा वायुमंडल में बहुत कम है किंतु यह वायुमंडल का एक महत्वपूर्ण घटक है। सूर्य से निकलने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों के अवशोषण गुणों के कारण यह विशेष महत्वपूर्ण है। यह पृथ्वी की सतह से 15 से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाया जाता है।
जेट वायुयानों के द्वारा, नाइट्रोजन ऑक्साइड, एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर आदि में प्रयुक्त क्लोरोफ्लोरोकार्बन इसकी परत को हानि पहुंचा रहे है। एक अनुमान के अनुसार यदि 500 सुपरसोनिक जेट का एक दल प्रतिदिन उड़ान भरता है तो ओजोन परत में 12% तक की कमी आ सकता है। ओजोन परत को नुकसान होने से बचाने के लिए मंट्रियाल प्रोटोकॉल 1987 पर सहमति बनी थी। अभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है ।
जलवाष्प
जलवाष्प की मात्रा वायुमंडल में प्रति इकाई आयतन में 0 से 4% तक पाई जाती है। गर्म एवं उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में यह हवा के आयतन का 4% तक हो सकती है। जबकि ध्रुव जैसे ठंडे तथा रेगिस्तान जैसे शुष्क प्रदेशों में यह हवा के आयतन का 1% भाग से भी कम होता है। कार्बन डाइऑक्साइड की तरह जलवाष्प भी ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करते हैं। वायुमंडल का कुल 0.035% जलवाष्प के रूप में वायुमंडल में सुरक्षित है l
धूल कण
वायुमंडल में छोटे-छोटे ठोस कणों को भी रखने की क्षमता होती है। इनमें मुख्यतः समुद्री नमक, धुए की काली राख, पराग, धूल, मिट्टी के कण आदि होते हैं। ध्रुवीय और विषुवत रेखीय प्रदेशों की अपेक्षा उपोष्ण तथा शीतोष्ण क्षेत्रों में धूल के कणों की मात्रा अधिक पाई जाती हैं।
धूल और नमक के कण आद्रता ग्राही केंद्र की तरह कार्य करते हैं। जिसके चारों ओर जलवाष्प संगठित होकर मेघों का निर्माण करते है। धूल के कण सूर्यास्त को रोकने और उसे परिवर्तित करने का कार्य भी करते हैं। यह सूर्योदय और सूर्यास्त के समय प्रकाश के प्रकीर्णन द्वारा आकाश में लाल या नारंगी रंग की धाराओं का निर्माण करते हैं। वर्षा, कोहरा, धुंध, बादल आदि धूल कणों के प्रतिफल हैं l