भू आकृति विज्ञान (Geomorphology) की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ज्योमोरफ़ोलॉजी से हुई है। यह भौतिक भूगोल की महत्वपूर्ण उपशाखा है। इसके अंतर्गत चट्टानों की उत्पत्ति, जीवन, पृथ्वी की आंतरिक संरचना, ज्वालामुखी उद्गार, भूकंप, पर्वत निर्माण प्रक्रिया, समतलीकरण, अपरदन चक्र, नदी, हिमानी और भूमिगत जल के अपरदनात्मक परिवहनात्मक एवं निक्षेपनात्मक कार्यों का अध्ययन किया जाता है।
भू आकृति विज्ञान की परिभाषा : definition of Geomorphology
भू आकृति विज्ञान का अध्ययन 18 वीं शताब्दी के अंत में प्रारंभ हुआ। यूरोपीय विद्वानों ने भू आकृति विचारों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । भू आकृति विज्ञान के क्षेत्र में सर्वाधिक सराहनीय कार्य जेम्स हटन ने किया उन्होंने एकरूपतावाद के विचारधारा को प्रतिपादित किया और बताया कि वर्तमान ही भूतकाल की कुंजी है। आगे चलकर जॉन प्लेयर तथा सर चार्ल्स लॉयल ने इस संकल्पना को आगे बढ़ाया। इस विचारधारा के अनुसार वर्तमान समय में जो प्रक्रम क्रियाशील हैं अतीत काल में भी वही प्रक्रम क्रियाशील रहे होंगे। इनके कार्य करने के क्षेत्र तथा तीव्रता में भिन्नता हो सकती है। जो प्रक्रम आज तेजी से कार्य कर रहे हैं भूतकाल में वह कम प्रभावशाली रहे होंगे।
डेविस ने भी संरचना को प्रक्रम, अवस्था के साथ स्थल आकृतियों के विकास का एक महत्वपूर्ण कारक माना है। बुलरिज और मोरगन के अनुसार,” चट्टाने चाहे आग्नेय हो या अवसादी एक ओर तो पृथ्वी के इतिहास की हस्तलिपि प्रस्तुत करती हैं तो दूसरी ओर समकालीन दृश्यावली के लिए आधार प्रस्तुत करती हैं।”
अमेरिकी भूगोलवेत्ता लॉबेक ने भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) को पृथ्वी के धरातलीय स्वरूपों का अध्ययन माना है। उनके अनुसार भू आकृति विज्ञान धरातल के लक्षणों का विज्ञान है।
स्ट्रालर के अनुसार:- “भू- आकृति विज्ञान सभी प्रकार के स्थलरूपों के उत्पत्ति तथा उनके व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध विकास की व्याख्या करता है तथा यह भौतिक भूगोल का एक प्रमुख अंग है।”
स्ट्राहलार ने भू आकृति विज्ञान में स्थलीय धरातल की आकृतियों के साथ सागर और महासागरों के स्थल रूपों को भी सम्मिलित करने पर बल दिया।
ए. एल. ब्लूम के अनुसार:- ” भू- आकृति विज्ञान स्थलाकृतियों तथा उन्हें परिवर्तित करने वाले प्रक्रमों का क्रमबद्द वर्णन एवं विश्लेषण किया करता है।”
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उच्चावच के प्रकार :-
भू आकृति विज्ञान के अंतर्गत निम्न तीन प्रकार के उच्चावच को सम्मिलित किया जाता है
1.प्रथम श्रेणी के उच्चावच
इसके अंतर्गत महाद्वीप और महासागरीय बेसिन को सम्मिलित किया जाता है।
2.द्वितीय श्रेणी के उच्चावच
इसके अंतर्गत पर्वत, पठार, मैदान तथा झीलों का अध्ययन किया जाता है।
3. तृतीय श्रेणी के उच्चावच
इसके अंतर्गत नदी, सागरीय जल, भूमिगत जल, पवन, हिमनद आदि के कारण उत्पन्न स्थलाकृतियों का अध्ययन किया जाता है।
- अंतर्जात और बहिर्जात शक्तियां: Endogenic and Exogenic forces
- अपक्षय और अपरदन के प्रकार : Types of weathering and erosion
भू आकृति विज्ञान की मूलभूत संकल्पनाऐं : fundamental concepts of Geomorphology
भूगोल में भू आकृति विज्ञान की अनेक संकल्पना हैं जो समय-समय पर परिवर्तित होती रहती हैं। थार्नबरी महोदय ने निम्नलिखित संकल्पना का प्रतिपादन किया है:-
1 वर्तमान समय में जो भौतिक प्रक्रम तथा नियम कार्यरत हैं वहीं समस्त भूगर्भिक काल में कार्यरत रहे हैं, किंतु उनकी तीव्रता जितनी आज है उतनी उस समय समान नहीं रही होगी।
2 स्थल रूपों के विकास में भूगर्भिक संरचना एक महत्वपूर्ण नियंत्रक कारक है।
3 भू आकृति प्रक्रम स्थल रूपों पर अपने विशेष छाप छोड़ते हैं तथा प्रत्येक भू-आकृति प्रक्रम स्वयं के स्थल रूपों का विशिष्ट समुदाय विकसित करता है।
4 भू आकृतिक प्रक्रमों में विभिन्न गति से क्रियाशील होने के कारण भूतल के अधिकांश उच्चावच निर्मित हुए हैं।
5 भूतल पर जैसे ही विभिन्न अपरदनात्मक कारक कार्यरत होते हैं स्थल रूपों का एक व्यवस्थित अनुक्रम उत्पन्न होता है।
6 भू आकृतियों के विकास में सामान्यताओं की अपेक्षा जटिलताएं अधिक हैं।
7 पृथ्वी की स्थलाकृति का बहुत कम भाग टर्शरी युग से प्राचीन है तथा अधिकांश भाग प्लेस्टोसीन युग से अधिक प्राचीन है।
8 प्लेस्टोसीन युग में हुए भूगर्भिक एवं जलवायु संबंधी परिवर्तनों के प्रभावों के मूल्यांकन बिना वर्तमान स्थल आकृतियों की स्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत नहीं की जा सकती है।
9 विभिन्न स्थलाकृतिक प्रक्रमों के बदलते हुए महत्व को समझने के लिए विश्व की जलवायु का मूल्यांकन आवश्यक है।
10 यद्यपि भू आकृति विज्ञान (Geomorphology) मुख्यतः वर्तमान भू आकृतियों से संबंधित है किंतु ऐतिहासिक विस्तार से इनकी अधिकतम उपयोगिता होती है।
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